गणतंत्र दिवस पर आयोजित ट्रैक्टर परेड में हुई हिंसा से एक वर्ग बेहद खुश नज़र आ रहा है। ऐसा लगता है जैसे उसे मन माँगी मुराद मिल गई हो या जैसे उन्हें बस ऐसे मौक़े का ही इंतज़ार रहा हो। उनके इस उत्साह को टीवी की ख़बरों, मोदी-भक्त एंकरों द्वारा संचालित होने वाली बहसों और सोशल मीडिया में की जा रही टिप्पणियों में देखा जा सकता है। वे आंदोलनकारियों पर हिंसा का दोष मढ़ने और उन्हें दंडित करने की बात कर रहे हैं। वे यह भी साबित करने में जुटे हुए हैं कि आंदोलन भटक गया है और अब उसे वापस ले लेना चाहिए।