अगर कहा जाए कि उत्तर प्रदेश सरकार का ध्येय वाक्य है— ‘आस्था बचाओ, विवेक जलाओ’ तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। आहार की शुचिता कायम करने के बहाने विवेक की शुचिता को भष्म किया जा रहा है। कांवड़ यात्रा के दौरान विक्रेताओं की पहचान प्रकट करने का आदेश न सिर्फ संविधान की भावना के विरुद्ध है बल्कि महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, डॉ. भीमराव आंबेडकर और डॉ. राममनोहर लोहिया, मौलाना अबुल कलाम आजाद के विचारों और संघर्ष के विरुद्ध है जो उन्होंने अपने आचरण से स्थापित करने की कोशिश की थी।
काँवड़ यात्रा नियम आदेश: आस्था की अग्नि में विवेक स्वाहा!
- विचार
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- 21 Jul, 2024

उत्तर प्रदेश में काँवड़ यात्रा मार्ग पर भोजनालयों, रेहड़ी पर मालिकों की पहचान उजागर करने वाला आदेश देने वालों को क्या यह पता है कि देश ने इतिहास में एकजुटता के लिए आस्था और विवेक के बीच किस तरह का सामंज्य देखा है?
महात्मा गांधी ने 1942 में युवाओं को संबोधित करते हुए कहा था कि आपके देशप्रेम और देशभक्ति का प्रमाण यह है कि अपने से इतर समुदाय के कितने लोगों को मित्र बनाते हैं। अगर आप हिंदू हैं तो कितने मुसलमानों को मित्र बनाते हैं और अगर मुसलमान हैं तो कितने हिंदुओं को मित्र बनाते हैं। यह शृंखला सिखों, ईसाइयों और बौद्धों, जैनों तक जानी चाहिए। इसी से भारत एकता के सूत्र में पिरोया जा सकेगा। जो लोग आस्था की शुचिता के नाम पर बार बार जाति और धर्म का विभाजन करने की कोशिश करते हैं वे न सिर्फ देशप्रेम को आहत कर रहे हैं बल्कि देशभक्ति को भी घायल करते हैं। कमजोर देशभक्ति पर टिका हुआ राष्ट्र न तो पाकिस्तान के विरुद्ध एकजुट रहेगा और न ही चीन के विरुद्ध। किसी के विरुद्ध की बात छोड़िए वह तो सकारात्मक कार्यों के लिए भी एकजुट नहीं रहेगा।
लेखक महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार हैं।