प्रधानमंत्री मोदी को दो बार सांसद बनाने और बीजेपी के लिए संसद में दो-दो बार सबसे ज़्यादा सांसद भेजने वाले उत्तर प्रदेश में बीजेपी का ‘अंगद का पांव’ हिलने लगा है। क्या उसे प्रदेश में पार्टी के भीतर चल रहे राजनीतिक भूकंप से अपनी ज़मीन हिलने का अहसास हो गया है? क्या इस सबको ठीक करने के लिए यूपी में सीएम योगी आदित्यनाथ को बदले जाने की कवायद हो सकती है? ऐसे बहुत से सवाल हैं जिससे प्रदेश और केंद्र में बैठे बीजेपी नेताओं की नींद उड़ गई है।
क़रीब दस दिनों से यूपी बीजेपी में हंगामा मचा हुआ है और पिछले तीन दिनों से चल रही लगातार बैठकों में ‘समुद्र मंथन’ की कोशिश की जा रही है, लेकिन अभी तक ‘सिर्फ़ विष’ ही निकला है और उसको लेकर कोई ‘नीलकंठ’ बनने को तैयार नहीं है। साल 2014 के आम चुनावों से पहले फ़रवरी 2022 में यूपी में विधानसभा चुनाव होने हैं और वो ना केवल ‘लिटमस टेस्ट’ है बल्कि उसे ‘सेमीफाइनल’ माना जा रहा है।
हाल में पश्चिम बंगाल के चुनाव नतीजों ने बीजेपी नेताओं को बड़ा झटका दिया है। अब तक हुई मशक्कत से इतना तय माना जा रहा है कि यूपी सरकार और प्रदेश बीजेपी संगठन दोनों ही स्तर पर बदलाव होने वाले हैं यानी कुछ मंत्रियों की छुट्टी भी हो सकती है, लेकिन फ़िलहाल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बीजेपी के राष्ट्रीय संगठन मंत्री की तारीफ़ से तसल्ली हो गई होगी कि चुनाव से पहले उनकी कुर्सी पर ख़तरा नहीं है। बीजेपी ने पिछले विधानसभा चुनाव में तीन सौ का आँकड़ा पार किया था और 15 साल बाद सरकार बनाई थी। उस चुनाव के वक़्त केशव प्रसाद मौर्य प्रदेश अध्यक्ष थे लेकिन चुनाव अमित शाह और सुनील बंसल की निगरानी में लड़ा गया था। मगर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बनाया गया जो गोरखपुर से पांच बार सांसद रहे थे।
यूपी संकट को लेकर आरएसएस के नए सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने दिल्ली में पहले प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह, जे पी नड्डा और यूपी प्रदेश संगठन मंत्री सुनील बंसल के साथ मुलाक़ात की। फिर लखनऊ में होसबोले ने संघ के प्रांत और क्षेत्रीय प्रचारकों और कुछ अन्य नेताओं से फीडबैक लिया तो बंसल ने बीजेपी नेताओं के साथ बैठकें कीं।
कहा जाता है कि संगठन, सरकार में बदलाव के साथ साथ प्रशासनिक स्तर पर भी बड़े पैमाने पर फेरबदल की तैयारी हो रही है। केन्द्रीय मंत्रिमंडल में भी कुछ जगह यूपी को मिल सकती है।
बताया जाता है कि इन मुलाक़ातों के दौरान ही यूपी सरकार के एक सीनियर मंत्री दिल्ली पहुँच गए और उन्होंने जे पी नड्डा के साथ-साथ संघ के बड़े पदाधिकारियों के यहाँ अपनी हाज़िरी लगा दी। इन सबके बीच एक अहम नाम है ए के शर्मा का, शर्मा गुजरात में आईएएस अफसर थे और प्रधानमंत्री मोदी के पसंदीदा हैं, उन्हें यूपी भेजा गया, फिर विधान परिषद में भिजवाया गया और अभी प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी का ज़िम्मा लिए हुए हैं। चर्चा है कि उन्हें सरकार में अहम भूमिका दी जा सकती है। सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शर्मा को उप मुख्यमंत्री बनाए जाने के पक्ष में नहीं हैं।
संगठन मंत्री संतोष ने दो दिनों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, दिनेश शर्मा के अलावा सरकार के दोनों प्रवक्ताओं सिद्धार्थ नाथ सिंह और श्रीकांत शर्मा से मुलाक़ात की। श्रीकांत और सिद्धार्थ नाथ दोनों ही दिल्ली में बीजेपी के राष्ट्रीय स्तर पर प्रवक्ता रहे हैं और श्रीकांत गृहमंत्री अमित शाह के पसंदीदा माने जाते हैं।
उन्होंने इनके अलावा बीएसपी से बीजेपी में आए स्वामी प्रसाद मौर्य, अनिल राजभर, अशोक कटारिया, सतीश द्विवेदी, महेन्द्र सिंह और कई और मंत्रियों से मुलाक़ात की। संतोष ने इन मंत्रियों के साथ सोशल इंजीनियरिंग यानी जाति समीकरणों पर भी चर्चा की। कोरोना संकट से हुए नुक़सान के लिए लोगों के मन से नेगेटिविटी को दूर करने और सरकार की छवि में लगी खरोंच को ठीक करने पर ज़ोर दिया। खुद मुख्यमंत्री पिछले दस दिनों से लगातार ज़िलों के दौरों पर चल रहे हैं।
इन ताबड़-तोड़ बैठकों और फीडबैक के बाद बुधवार सुबह जब बी एल संतोष ने ट्वीट कर मुख्यमंत्री योगी की तारीफ़ की तो असंतुष्ट नेताओं को निराशा हाथ लगी, हालाँकि उनका कहना है कि सार्वजनिक तौर पर संगठन मंत्री को ऐसा तो करना ही था, लेकिन सरकार के कामकाज और खासतौर से कोरोना काल में जनता की नाराज़गी, अदालतों के बयानों से केन्द्रीय नेतृत्व खुश नहीं है। खासतौर से गंगा सहित कई नदियों में तैरती लाशों की तस्वीरों को गंभीरता से लिया गया है।
संतोष ने अपने ट्वीट में कहा कि– “यूपी में कोरोना के नए केस में 93% तक की कमी आई है। 20 करोड़ से ज़्यादा की आबादी वाले प्रदेश के सीएम ने पांच सप्ताह में जिस प्रभावी तरीक़े से कोरोना पर नियंत्रण पाया है, वह काम 1.5 करोड़ वाले छोटी से म्यूनिसपैलिटी के सीएम भी नहीं कर पाए हैं”। साथ ही तीसरी वेव के लिए भी सरकार ने अभी से तैयारी शुरू कर दी है। यानी संतोष ने नेतृत्व में बदलाव की संभावनाओं से फ़िलहाल इंकार कर दिया है। मतलब अगले चुनाव तक योगी ही मुख्यमंत्री रहेंगे, लेकिन इसका मतलब फ़िलहाल यह नहीं लगाया जा सकता कि योगी के नेतृत्व में ही पार्टी चुनाव लड़ेगी। पार्टी के नेता भी योगी आदित्यनाथ के अंदाज़ और राजनीतिक तौर-तरीक़ों से परिचित होंगे, उन्हें नाराज़ करके आगे बढ़ना आसान काम नहीं होगा।
In five weeks, @myogiadityanath's Uttar Pradesh reduced the new daily case count by 93% ... Remember it’s a state with 20+ Cr population . When municipality CMs could not manage a city of 1.5Cr population , Yogiji managed quite effectively .
— B L Santhosh (@blsanthosh) June 1, 2021
उप मुख्यमंत्री मौर्य ने पिछले चार साल की अपनी व्यथा नेताओं के सामने रखी कि किस तरह सरकार में उनकी उपेक्षा की गई।
यूँ तो व्यथा की यह कहानी सरकार बनने के अगले दिन ही शुरू हो गई थी जब मुख्यमंत्री और सरकार के दफ्तर के पंचम तल पर मौर्य ने एक कमरे के बाहर अपने नाम की तख्ती लगवा दी थी, लेकिन मुख्यमंत्री योगी ने उसे हटवा दिया और पंचम तल सिर्फ़ मुख्यमंत्री के लिए रह गया। मौर्य के कहने पर ज़िलाधीशों और दूसरे अफ़सरों के तबादले नहीं हुए, उनके विभाग की फ़ाइलें सीएम देखते रहे, रोकते रहे, अटकती रहीं और बीजेपी में केन्द्रीय स्तर पर कोई सुनवाई नहीं हुई। चार साल में शायद यह पहला मौक़ा होगा जब बीजेपी के राष्ट्रीय संगठन मंत्री संतोष ने यूपी बीजेपी की सुध ली।
अमित शाह के यूपी की ज़िम्मेदारी और अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद से नए अध्यक्ष नड्डा ने भी प्रदेश में आ रहे भूचाल को कभी गंभीरता से नहीं लिया।
वैसे कहानी का ट्विस्ट तो उसी दिन शुरू हो गया था। मुख्यमंत्री का सपना पाले मौर्य उस विशेष जहाज में योगी आदित्यनाथ के साथ ही दिल्ली से लखनऊ पहुँचे थे और उनके सैकड़ों कार्यकर्ता एयरपोर्ट पर भावी मुख्यमंत्री के स्वागत के लिए खड़े थे, लेकिन उस राजनीतिक फ़िल्म की स्क्रिप्ट तब तक बदली जा चुकी थी और अगले दिन योगी को शपथ दिला दी गई। दिन था 19 मार्च 2017। अब उन्हें अगले साल मार्च की शपथ ग्रहण की तारीख़ का इंतज़ार है बशर्ते बीजेपी वहाँ सरकार बनाने की हालत में हो, मौर्य ने फिर नारा दिया है अध्यक्ष जी के नेतृत्व में तीन सौ के पार… क्या वो अभी अध्यक्ष नहीं बनना चाहते, यह सवाल भी अभी लखनऊ और दिल्ली के बीच तैर रहा है। फिर लखनऊ के पंचम तल का फ़ैसला तो दिल्ली के 7 लोक कल्याण मार्ग में होगा।
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