भारत में दूध एवं दुग्ध उत्पादों का आयात एक बार फिर चर्चा में है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का स्वागत करने जा रहे भारत पर अमेरिका से डेयरी उत्पादों के आयात को लेकर दबाव है। अमेरिका ही नहीं, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड भी भारत में दुग्ध उत्पाद भेजने की कतार में हैं। वहीं आरएसएस से जुड़ा संगठन स्वदेशी जागरण मंच दुग्ध उत्पादों के आयात का विरोध करता रहा है। इस बार यह विरोध धार्मिक रूप भी ले चुका है, क्योंकि विदेशों में गायों को मांस से बने उत्पाद खिलाए जाते हैं।
ट्रंप के कहने से क्या ख़ून पीने वाली गायों का दूध आयात करने लगेंगे मोदी?
- विचार
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- 22 Feb, 2020

भारत में दूध एवं दुग्ध उत्पादों का आयात एक बार फिर चर्चा में है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का स्वागत करने जा रहे भारत पर अमेरिका से डेयरी उत्पादों के आयात को लेकर दबाव है।
भारत के दुग्ध उत्पादकों और सरकार को हमेशा यह डर रहा है कि दूध उत्पादन करने वाले विकसित देश अगर भारत में दूध की आपूर्ति करते हैं तो पशुपालकों के तबाह होने का डर है। वजह यह है कि भारत की गायें स्वस्थ नहीं हैं और यहाँ प्रति गाय दुग्ध उत्पादन विकसित देशों की तुलना में बहुत कम है। इसके अलावा भारत में दूध की 60 प्रतिशत बिक्री असंगठित क्षेत्र द्वारा की जाती है। संगठित डेयरी क्षेत्र अगर बाजार ख़राब करने के लिए सस्ता माल उतारता है तो असंगठित रूप से दूध बेचने वाले ग्वाले पर इसका सबसे ज़्यादा असर पड़ने की आशंका है। महँगा इनपुट लागत होने के कारण दूध बेचकर रोज़ी-रोटी कमाने वाले ग्रामीणों की दुर्दशा बढ़ जाएगी, जो पहले से ही बहुत बुरे हाल में हैं। भारत में इसका महत्व इस तरह से समझा जा सकता है कि कम खेतों वाले ज़्यादातर किसान पशुपालन से रोज़ी-रोटी चलाते हैं और ग्रामीण परिवारों का 1.75 प्रतिशत पशुधन पर निर्भर है।