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ट्रंप की छटपटाहट सही, पर समाधान ग़लत!

चीन ने अपना डिफेन्स बजट 7.6 प्रतिशत बढ़ा दिया है। जानकार बताते हैं कि यह प्रतिशत भी इस मद में अघोषित व्यय से काफ़ी कम है। चीन चूँकि खुली यानी पारदर्शी इकॉनमी और लिबरल प्रजातंत्र नहीं है इसलिए उसके बारे में कयास ही लगाये जा सकते हैं। चूँकि धरातल पर यह देश बहुत कुछ ऐसा करता रहा है जो विश्व को अचंभित कर देता है-- डीपसीक उसका सबसे नया उदाहरण है— लिहाज़ा उसके बारे में कुछ भी अनुमान कयास ही माना जाता है। बहरहाल, यही डर अमेरिका का भी है। अमेरिका और चीन के तुलनात्मक आँकड़े बताते हैं कि जीडीपी आयतन, सामरिक क्षमता, मैन्युफैक्चरिंग, विश्व व्यापार और हाल के दिनों में तकनीकी में बड़ी तेज़ी से चीन अमेरिका को पछाड़ने की स्थिति में है। लिहाज़ा अमेरिकी जनता को राष्ट्रपति ट्रंप का नारा ‘अमेरिका फर्स्ट’ और ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ भा रहा है।

लेकिन इसका समाधान क्या दूसरों की जमीन हड़पना (कनाडा), किसी संप्रभु देश का कोई इलाक़ा बलात ‘खरीदने’ का दबाव डालना (डेनमार्क से ग्रीनलैंड हासिल करना) और इसराइल से युद्ध में कमजोर पड़े फिलिस्तीनियों को ग़ज़ा से निकाल कर वहाँ सामुद्रिक रिसोर्ट बनाने का मंसूबा है? तीन दशक पहले वर्ल्ड ट्रेड को नया आयाम देने के लिए बने संगठन डब्ल्यूटीओ की बुनियाद थी यह सोच कि बड़े देश छोटे देशों को भी आगे आने में मदद करें और इसके लिए डिफरेंशियल टैरिफ़ का सिद्धांत आया यानी छोटे देश ज़्यादा टैरिफ़ ले सकें और बड़े देश कम। 34 साल बाद अमेरिका में एक शासक आता है ट्रंप जैसा जो इसे सिरे से ख़ारिज कर देता है। नतीजतन पूरी दुनिया का व्यापार ही नहीं, आर्थिकी भी हिल जाती है। 

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ट्रंप की शैली के मूल में कुतर्क है। एक उदाहरण देखें। रूस आक्रामक था यह बात पूरी दुनिया जानती है लेकिन तीन साल इसी सत्य के आधार पर रूस में प्रतिबन्ध और उक्रेन को आर्थिक और सामरिक मदद के बाद अब ट्रम्प ने राष्ट्रपति बनने के बाद उक्रेन को हमलावर और उसके राष्ट्रपति जेलेंस्की को ‘कॉमेडियन’ बता कर अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में बददिमागी, अनैतिक आचरण, कुतर्क और दबंगई का नया व्याकरण लिखना शुरू किया।

लेकिन क्या इससे अमेरिका फिर से ‘ग्रेट’ बनेगा या ‘छिछोरा’? महान और बड़ा बनने में मूल अंतर यह है कि पहला मकाम हासिल करने के लिए वहाँ के लोगों की सापेक्ष गुणवत्ता बेहतर हो। ट्रंप के ही सलाहकार रामास्वामी ने एक्स पर लिखा था कि जिस देश (अमेरिका) में ओलम्पियाड की मैथ्स टॉपर की जगह बेस्ट डांसर को सम्मानित किया जाता हो वह देश महान कैसे बनेगा? 

ट्रंप-भक्तों की नाराजगी देख ट्रंप ने रामास्वामी को हटा दिया क्योंकि अहंकारी अमेरिकियों को एक भारतीय-अमेरिकन का आइना दिखाना यह नागवार गुजरा। लेकिन क्या आज अमेरिका के ‘फन-सीकिंग’ (मजे लेने वाले) युवा वाक़ई एआई के दौर में अमेरिका को सक्षम बनाने के लिए बौद्धिक रूप से तैयार हैं?
यह सच है कि पिछले 14 वर्षों में जहाँ चीन का ट्रेड सरप्लस लगातार बढ़ता हुआ एक ट्रिलियन (958 बिलियन) डॉलर जा पहुँचा है वहीं अमेरिका का ट्रेड डेफिसिट लगातार गिरता हुआ 1.17 ट्रिलियन डॉलर हो गया है।
यानी चीन लगातार जहाँ ज़्यादा एक्सपोर्ट कर रहा है और कम खरीद रहा है वहीं इसके उलट अमेरिका ज़्यादा खरीद रहा है कम बेच रहा है। उधर, कॉर्पोरेट्स को विकसित देशों खासकर चीन, भारत, ताइवान, इसराइल में अपेक्षाकृत सस्ते तकनीकी एक्सपर्ट्स मिल रहे हैं या उत्पादन कर रहे हैं लिहाज़ा अमेरिकी युवा की काबिलयत कॉर्पोरेट के लिए अनुपयुक्त हो रही है। 
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चीन का डीपसीक कम समय, कम ख़र्च, कम गुणवत्ता वाले जीपीयू के सहारे भी बेहद कम बिजली ख़पत वाला एआई मॉडल है। लिहाज़ा ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ केवल टैरिफ़ बढ़ाने से नहीं होगा। क्या अमेरिकी युवाओं को सही शिक्षा के प्रति रुझान बढ़ाने का उपक्रम भी किया जा रहा है? 36 करोड़ आबादी वाले सबसे शक्तिशाली मुल्क का युवा समाज क्या वाक़ई आराम की ज़िंदगी छोड़ नए दौड़ में शामिल होने को तैयार है?

ट्रंप के उक्रेन से समझौते की मूल शर्त वहां के खनिज पर अमेरिकी हक़। क्या यह ताक़त के दम पर डकैती नहीं है? उत्तर भारत, खासकर मध्य यूपी में एक कहावत है— जबरा मारै, रोवै न दे (बलशाली मारता भी है और रोने भी नहीं देता)। लेकिन इससे अमेरिकी युवा की नए दौर में उपादेयता नहीं बढ़ेगी लिहाज़ा अमेरिका को ट्रंप ग्रेट तो नहीं बना सकेंगे, दबंगई से बड़ा ज़रूर बना सकते हैं।

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एन.के. सिंह
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