चीन ने अपना डिफेन्स बजट 7.6 प्रतिशत बढ़ा दिया है। जानकार बताते हैं कि यह प्रतिशत भी इस मद में अघोषित व्यय से काफ़ी कम है। चीन चूँकि खुली यानी पारदर्शी इकॉनमी और लिबरल प्रजातंत्र नहीं है इसलिए उसके बारे में कयास ही लगाये जा सकते हैं। चूँकि धरातल पर यह देश बहुत कुछ ऐसा करता रहा है जो विश्व को अचंभित कर देता है-- डीपसीक उसका सबसे नया उदाहरण है— लिहाज़ा उसके बारे में कुछ भी अनुमान कयास ही माना जाता है। बहरहाल, यही डर अमेरिका का भी है। अमेरिका और चीन के तुलनात्मक आँकड़े बताते हैं कि जीडीपी आयतन, सामरिक क्षमता, मैन्युफैक्चरिंग, विश्व व्यापार और हाल के दिनों में तकनीकी में बड़ी तेज़ी से चीन अमेरिका को पछाड़ने की स्थिति में है। लिहाज़ा अमेरिकी जनता को राष्ट्रपति ट्रंप का नारा ‘अमेरिका फर्स्ट’ और ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ भा रहा है।
ट्रंप की छटपटाहट सही, पर समाधान ग़लत!
- विचार
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- 8 Mar, 2025

क्या अमेरिकी युवाओं को सही शिक्षा के प्रति रुझान बढ़ाने का उपक्रम भी किया जा रहा है? 36 करोड़ आबादी वाले सबसे शक्तिशाली मुल्क का युवा समाज क्या वाक़ई आराम की ज़िंदगी छोड़ नए दौड़ में शामिल होने को तैयार है?
लेकिन इसका समाधान क्या दूसरों की जमीन हड़पना (कनाडा), किसी संप्रभु देश का कोई इलाक़ा बलात ‘खरीदने’ का दबाव डालना (डेनमार्क से ग्रीनलैंड हासिल करना) और इसराइल से युद्ध में कमजोर पड़े फिलिस्तीनियों को ग़ज़ा से निकाल कर वहाँ सामुद्रिक रिसोर्ट बनाने का मंसूबा है? तीन दशक पहले वर्ल्ड ट्रेड को नया आयाम देने के लिए बने संगठन डब्ल्यूटीओ की बुनियाद थी यह सोच कि बड़े देश छोटे देशों को भी आगे आने में मदद करें और इसके लिए डिफरेंशियल टैरिफ़ का सिद्धांत आया यानी छोटे देश ज़्यादा टैरिफ़ ले सकें और बड़े देश कम। 34 साल बाद अमेरिका में एक शासक आता है ट्रंप जैसा जो इसे सिरे से ख़ारिज कर देता है। नतीजतन पूरी दुनिया का व्यापार ही नहीं, आर्थिकी भी हिल जाती है।