ऐसे तो अपने पत्रकारिता के कार्यकाल में अनेक बड़ी-बड़ी हस्तियों से निकट से मिलने और उनके साथ यात्राएँ करने का अवसर मिला– किन्तु एक यात्रा ऐसी रही जिसे मैं आज तक भूल नहीं पाई हूँl वह थी जयप्रकाश नारायण के साथ उनके गाँव की यात्रा–
जब जेपी अपने गाँव पहुँचे तो सूनी सड़कें भी ज़िंदा हो उठी थीं!
- विचार
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- 8 Oct, 2022

जयप्रकाश नारायण को 1970 में इंदिरा गांधी के ख़िलाफ़ विपक्ष का नेतृत्व करने के लिए जाना जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि लोग उनको किस कदर चाहते थे? उनकी पुण्यतिथि के मौके पर पढ़िए उनके गाँव के दौरे की कहानी।
बलिया से सिताबदियरा का रास्ता उस दिन लोगों की भीड़ से भरा थाl एक हुजूम था, जो उमड़ता चला आ रहा थाl एक सैलाब जिसको बांध पाना असंभव था। सबके मुंह पर एक ही बात थी ‘जयप्रकाश बाबू आज आवतारन उनके देखे खातिर जाए के बा।’
‘कौन जयप्रकाश बाबू?’ मैंने एक बूढ़े से पूछ लिया।
“अरे, तू जयप्रकाश के नइखि जानत ह। बड़ा अचम्भा के बात बा। तू हिन्दुस्तान मा रहतारा कि पाकिस्तान मा?”
तभी पास खड़ा दूसरा बूढ़ा बोला, “अरे, तू कहीं के हो, तू खास जे. पी. के तो जनते होब, मजाक कर रहेल बा।”
सच में तो यह मजाक ही था। पर मैं उनके दिलों की आस्था को कुरेदना चाहती थी, पूरी तरह से। मैंने एक तीर और फेंका। गाड़ी जैसे ही जयप्रकाश नगर की ओर मुड़ी, दोबारा पूछा साथ चलती भीड़ से। “का हो भाई, कउनों मेला-वेला लगल बा?”
इस बार एक पढ़ा-लिखा लड़का सामने आया। बोला, “जयप्रकाश जी आज अपने गाँव में आये हैं। उन्हीं को देखने सभी जा रहे हैं।”
“तो इसमें खास बात क्या है?” फिर एक चोट थी।
“अरे बबुनी,” पास खड़ा एक दूसरा आदमी चट बोल उठा, “जयप्रकाश की जिनगी के कौऊ भरोसा बा, ई तो आखिरी भरसक दरसन हम लोग का मिलत बा।” और यह कहकर उस बूढ़े के पांव गाँव की उस बेतकल्लुफ पगडंडी पर बढ़ गये।