इन्दौर पहले से ही देश का सर्वाधिक स्वच्छ शहर लगातार कई बार घोषित हो चुका है। यहाँ के व्यापारियों ने मिलावटखोरी के विरुद्ध जो शपथनामा भरा है, उसने भी सारे देश को नई दिशा दिखाई है और अब राजनीति की दृष्टि से भी एक और उल्लेखनीय काम यहाँ हो गया है।
अपने राजनीतिक कार्यकर्ताओं को जो सीख कभी गांधीजी, नेहरूजी, लोहियाजी, श्रीपाद डांगेजी, दीनदयाल उपाध्यायजी आदि दिया करते थे, वही सीख मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने अपने बीजेपी कार्यकर्ताओं को दी है। वे आजकल अपने कार्यकर्ता शिविर की खातिर उज्जैन और इंदौर में प्रवास कर रहे हैं।
शिवराज सिंह चौहान ने अपने कार्यकर्ताओं को सफलता, लोकप्रियता और जन-सेवा के जो गुर बताए हैं, वे सिर्फ बीजेपी ही नहीं, देश की सभी पार्टियों के लिए अनुकरणीय हैं। उन्होंने कार्यकर्ताओं को प्रेरित किया है कि वे जनता से अपना सीधा संपर्क बढ़ाएँ।
मंत्रियों को दी नसीहत
उन्होंने मंत्रियों और विधायकों से कहा है कि वे अपने निजी सहायकों (पीए आदि) से सतर्क रहें, क्योंकि उनके अहंकार का गुब्बारा उनमें अपने स्वामी से भी ज़्यादा फूल जाता है। चाय से ज्यादा गर्म केटली हो जाती है। यानी अपने सहायकों को नेता लोग विनम्रता और ईमानदारी सिखाएं। कई देशी और विदेशी प्रधानमंत्रियों को अपने सहायकों के भ्रष्ट और फूहड़ आचरण के कारण बहुत बुरे दिन देखने पड़े हैं।
चौहान ने बिचौलिए और दलालों से भी सावधान रहने के लिए कहा है। आजकल यह ‘लाएसाँ’ नामक बड़ा धंधा बन गया है। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मंत्रियों से कहा है कि वे कार्यकर्ताओं के लिए प्रति सप्ताह कुछ घंटे सीधे संवाद के लिए निकाला करें।
मैं कहता हूँ कि वे आम जनता से भी सीधे उनके दुख-दर्द सुनने का समय क्यों नहीं रोज निकालते? यदि यही काम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करें, चाहे सप्ताह में एक बार ही करें, तो भी देश की जनता बड़ी राहत महसूस करेगी।
जरा याद कीजिए, इंदिरा गांधी के ‘जनता दरबारों’ को। वह प्रधानमंत्री का नहीं, जनता का दरबार होता था। ‘जनता के दरबार’ में प्रधानमंत्री खुद पेश होती थीं। यदि मोदी इसे करेंगे तो देश के सभी पार्टियों के मुख्यमंत्री भी यह काम जोर-शोर से करने लगेंगे।
जनता दरबार
भारत का लोकतंत्र बहुत ही स्वस्थ और सबल बनेगा। नौटंकियों के बिना राजनीति को चलाना बहुत मुश्किल है। वे चलती रहें, लेकिन उनके साथ-साथ जनता (और पत्रकारों) के साथ यदि आपका सीधा संवाद नहीं है तो आपकी सरकार कैसे पैंदे में बैठती जा रही है, यह आपको पता ही नहीं चलेगा।
सरकारें जो जनहितकारी श्रेष्ठ काम करती हैं, उन पर सीधे जनता की प्रतिक्रिया सुनें तो क्या प्रधानमंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों, सांसदों और विधायकों के सीने खुशी से फूलने नहीं लगेंगे? उनमें विशेष उत्साह जागृत नहीं हो जाएगा?
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