तेरे माथे पे ये आँचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन
शाहीन बाग़ की महिलाओं के राष्ट्रवाद-गाँधीगीरी से क्यों डरना चाहिए सरकार को?
- विचार
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- 20 Jan, 2020

कश्मीर के पत्थरबाज़ मुसलमान की विध्वंसक छवि को सामने रखकर, उसे पाकिस्तान परस्त और देशद्रोही क़रार दे और इस बहाने उत्तर भारत के मुसलमानों को भी संदेह के दायरे में समेटने की सांप्रदायिक राजनीति बीजेपी के लिए बेहद मुफ़ीद थी। लेकिन शाहीन बाग़ की महिलाओं ने अपने आंदोलन को देशद्रोही, पाकिस्तान परस्त और सांप्रदायिक साबित किये जाने की संभावनाओं को जड़ें जमाने नहीं दी हैं।
तू इस आँचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था
मशहूर शायर मजाज़ लखनवी ने अपनी इन इन्क़लाबी लाइनों के ज़रिये आज़ादी की लड़ाई में महिलाओं की भूमिका का जो सपना देखा था, शाहीन बाग़ की महिलाओं ने उसे अमल में लाकर हक़ीक़त में बदल दिया है। नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए), राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर यानी एनपीआर के विरोध में शुरू हुई मुहिम ने दिल्ली के एक मोहल्ले शाहीन बाग़ को संघर्ष का एक सशक्त रूपक बना दिया है। शाहीन बाग़ अब महज़ किसी जगह का नाम नहीं है। वह पूरे देश में और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की आम जनता के प्रतिरोध की पहचान बन गया है।