बँटवारा 1947 में लगा एक ऐसा ज़ख्म है जिससे आज भी रह-रह कर दर्द, ग़म, ग़ुस्सा और नफ़रत रिसते रहते हैं। बँटवारे की सांप्रदायिक सियासत ने सिर्फ़ दो मुल्कों के बीच दीवार खड़ी नहीं की, बल्कि दो कौमों के बीच सदियों के साथ के बावजूद मौजूद दरार को और भी गाढ़ा कर दिया है। हिंदू-मुसलमान, पाकिस्तान, बँटवारा, हिंदू राष्ट्र के शोर-शराबे और कटुतापूर्ण विमर्श को समझने के लिए दरअसल बार-बार एक लंबे धारावाहिक फ़्लैशबैक की तरफ़ जाने की ज़रूरत है।