शहीदे आज़म भगत सिंह का जन्मदिन क़रीब आते ही तस्वीरों और श्रद्धांजलि से सोशल मीडिया ख़ासतौर पर भर जाता है। नुकीली मूँछों और हैटधारी भगत सिंह की सुदर्शन तस्वीर को श्रद्धांजलि देने में पार्टी और विचारधारा का फ़र्क़ मिटता दिखता है। हद तो ये है कि बीजेपी से जुड़े लोग भी इस होड़ में आगे निकलते दिखना चाहते हैं जबकि भगत सिंह के विचार उनकी राजनीति और वैचारिक दर्शन से पूरी तरह उलट हैं।
धर्म के नाम पर नफ़रत फैलाने वाले कैसे हो सकते हैं भगत सिंह के भक्त?
- विचार
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- 28 Sep, 2023

शहीदे आज़म भगत सिंह का आज जन्मदिन है। सोशल मीडिया पर तस्वीरें साझा कर श्रद्धांजलि देने वाले लोग क्या जानते हैं कि उनकी क्या विचारधारा थी और सांप्रदायिकता को वह कैसे देखते थे?
क्या भगत सिंह महज़ मूर्ति या तस्वीर हैं जिस पर माला-फूल चढ़ाकर भुलाया जा सकता है? भगत सिंह के विचारों से ग़ुजरते हुए कोई भी उस आग को महसूस कर सकता है जो इस सवाल का जवाब ‘न’ में देती है। भगत सिंह ‘शहीदे आज़म’ ही इसलिए कहलाए कि उन्होंने क्रांतिकारी संगठन को वैचारिक दिशा दी और स्पष्ट किया कि उनके सपनों का भारत कैसा होगा! उन्होंने ‘व्यक्तिगत हत्याओं’ की वीरता की जगह शोषणमुक्त समाज की स्पष्ट वैचारिकी को क्रांतिकारी होने की कसौटी बनाया। लाला लाजपत राज की शहादत के बदले अंग्रेज़ अफ़सर सांडर्स की हत्या के लिए हुए ‘एक्शन’ में भगत सिंह निश्चित ही शामिल थे लेकिन जल्दी ही उन्हें इसकी निर्थकता का अहसास हो गया था और वे ‘बुलेट नहीं बुलेटिन’ की वक़ालत करने लगे थे। केंद्रीय असेंबली में उन्होंने जो बम फेंका था, उसका मक़सद भी किसी की जान लेना नहीं, ‘बहरे कानों’ को सुनाने के लिए महज़ ‘धमाका’ करना था। वे साफ़ तौर पर कहते हैं, “बम और पिस्तौल इंकलाब नहीं लाते बल्कि इंकलाब की तलवार तो विचारों की सान पर तेज़ होती है।“