क्या भारत, तालिबान बनने की राह पर है? या यह इस्लामिक स्टेट या अल क़ायदा की तरह की ज़मीन बन रही है? या फिर नक्सलवाद पूरे देश में फैल रहा है? ये वे संगठन हैं जिनकी आस्था किसी क़ानून में नहीं है। ये अपने हिसाब से तय करते हैं कि किसको सजा देनी है और किसका सिर क़लम करना है? किसकी जान लेनी है और किसको ज़िंदा रहना है? आपने वे तस्वीरें देखी होंगी जिनमें सिर पर बंदूक लगाकर आदमी का क़त्ल करते दिखाया जाता है। और बाद में इसको जिहाद या फिर सरकार के दमन के नाम पर सही ठहराया जाता है। ये तस्वीरें हमें अंदर तक हिला देती हैं। डराती हैं। क्योंकि ये जुनूनी लोग हैं, जो धर्म के नाम पर, विचारधारा के नाम पर क़त्ल कर रहे हैं। इनकी नज़र में सच वह है जो ये समझते हैं और जो इनसे सहमत नहीं हैं या उनकी आलोचना करते हैं, उन्हें जीने का अधिकार नहीं देते। मौत के घाट उतार देते हैं। सभ्य समाज इन्हें आतंकवादी कहता है।