क्या भारत, तालिबान बनने की राह पर है? या यह इस्लामिक स्टेट या अल क़ायदा की तरह की ज़मीन बन रही है? या फिर नक्सलवाद पूरे देश में फैल रहा है? ये वे संगठन हैं जिनकी आस्था किसी क़ानून में नहीं है। ये अपने हिसाब से तय करते हैं कि किसको सजा देनी है और किसका सिर क़लम करना है? किसकी जान लेनी है और किसको ज़िंदा रहना है? आपने वे तस्वीरें देखी होंगी जिनमें सिर पर बंदूक लगाकर आदमी का क़त्ल करते दिखाया जाता है। और बाद में इसको जिहाद या फिर सरकार के दमन के नाम पर सही ठहराया जाता है। ये तस्वीरें हमें अंदर तक हिला देती हैं। डराती हैं। क्योंकि ये जुनूनी लोग हैं, जो धर्म के नाम पर, विचारधारा के नाम पर क़त्ल कर रहे हैं। इनकी नज़र में सच वह है जो ये समझते हैं और जो इनसे सहमत नहीं हैं या उनकी आलोचना करते हैं, उन्हें जीने का अधिकार नहीं देते। मौत के घाट उतार देते हैं। सभ्य समाज इन्हें आतंकवादी कहता है।

पुलिस जाँच में बात पता चला है कि सनातन संस्था ने धर्म विरोधियों की हत्या के बारे में बाक़ायदा एक गाइडलाइन बना रखी है। ‘क्षात्र धर्म साधना’ के नाम से एक पुस्तिका भी है जो ऑनलाइन भी उपलब्ध है। इस पुस्तिका में क़त्ल की न केवल रूपरेखा स्थापित की गई है बल्कि उसका एक पुष्ट तर्क भी दिया गया है कि क्यों ऐसे लोगों की हत्या ज़रूरी है।
पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताब भी है।