जब दिल्ली, लखनऊ से लेकर मुंबई, अहमदाबाद तक कोरोना से हाहाकार मचा हुआ था, अस्पतालों में बिस्तर नहीं थे, वेंटीलेटर और ऑक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध नहीं हो रहे थे, दवाइयाँ मिलना मुश्किल हो गया था, मरीजों के परिजन दर-दर की ठोकरें खा रहे थे; सरकार से गुहार लगा रहे थे, पत्रकारों को ट्वीट कर रहे थे और भगवान से प्रार्थना कर रहे थे; तब दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन (बीबीसी के अनुसार) ग़ायब था।

कोरोना आपदा से सरकार का निकम्मापन ही उजागर नहीं हुआ, बल्कि संघ का राष्ट्र सेवा और लोक कल्याण का मुखौटा भी उतर गया। संघ प्रचारकों और स्वयंसेवकों ने लोगों के बीच अपनी बहुत सौम्य और प्रेरक छवि बनाई थी। अब यह छवि दरक गई है।
देशभर में 55000 शाखाएँ लगाने वाले और लाखों संगठित तथा प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं वाले इस संगठन की गतिविधियों की कोई ख़बर नहीं थी। जब ऑक्सीजन, बेड और एंबुलेंस नहीं मिल रहे थे, तब 'राष्ट्रसेवा' के लिए समर्पित राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ कहाँ था? क्या आरएसएस ऑक्सीजन नहीं उपलब्ध करा सकता था? जब दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के नेता ऑक्सीजन, प्लाज्मा और दवाएं मरीजों तक पहुँचा सकते थे तो सत्ताधारियों का पितृ संगठन क्यों नहीं? कोरोना आपदा की दूसरी लहर में पूरी तरह से ग़ायब रहने वाले 'मातृभूमि की निस्वार्थ भाव से सेवा करने' वाले संगठन पर जब यह सवाल उछाला गया तो कुछ स्वयं सेवकों को सिलेंडर ले जाते हुए एक तस्वीर में देखा गया। सेवा की खातिर इस तस्वीर को वायरल किया गया था! लेकिन स्वयं सेवकों के हाथ में कार्बन डाई ऑक्साइड का सिलेंडर था।
लेखक सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक हैं और लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में असि. प्रोफ़ेसर हैं।