बाबा रामदेव अपने बयानों को लेकर आजकल फिर सुर्खियों में हैं। कोरोना महामारी में हो रही मौतों के लिए एलोपैथ और डॉक्टरों को जिम्मेदार ठहराने वाले बाबा की जुबान थमने का नाम नहीं ले रही है। जब डॉक्टरों के संगठन आईएमए ने बाबा पर एफ़आईआर करने की बात की तो रामदेव ने धमकी भरे अंदाज में कहा कि किसी के बाप में भी उन्हें गिरफ्तार करने की हिम्मत नहीं है! लेकिन सवाल यह है कि लोकतंत्र और कानून के शासन में बाबा को इतना बोलने की हिम्मत कहाँ से मिल रही है?

रामदेव पहले भी अपने मित्र को डिफेंड कर चुके हैं। महंगे पेट्रोल और डीजल पर यूपीए सरकार को घेरने वाले बाबा रामदेव ने मोदी सरकार में अंतरराष्ट्रीय बाजार में सस्ते कच्चे तेल के बावजूद महंगे डीजल पेट्रोल का बचाव करते हुए कहा था कि मोदी जी को सरकार भी तो चलानी है। सरकार चलाने के लिए पैसा चाहिए।
बाबा का एलोपैथ पर हमला संविधान में निहित वैज्ञानिक सोच को प्रोत्साहित करने के विचार पर हमला है। क्या रामदेव संविधान और कानून दोनों से ऊपर हैं? आखिर यह ताकत बाबा रामदेव को कहाँ से मिल रही है? क्या रामदेव को यह ताकत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिल रही है? कहीं ऐसा तो नहीं है कि रामदेव अपने मित्र मोदी के इशारे पर ही ऐसे बयान दे रहे हैं? सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का!
साइकिल पर आयुर्वेद का नुस्खा बेचने और घरों में योग सिखाने से अपना जीवन शुरू करने वाले बाबा रामदेव आज हजारों करोड़ के मालिक हैं। बड़े विमान में उड़ने वाले रामदेव ने योग को बाजार से जोड़कर दुनिया के कई देशों में उसे लोकप्रिय बनाया। देश-विदेश में रामदेव के करोड़ों फॉलोवर हैं। आज वे भारत में बड़ी कारपोरेट ताकत बन चुके हैं।
लेखक सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक हैं और लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में असि. प्रोफ़ेसर हैं।