'राष्ट्र के पुनर्निर्माण' और 'हिन्दुओं को एकताबद्ध' करने के उद्देश्य से केशव बलिराम हेडगेवार ने 1925 में नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की। 97 साल के लंबे सफर में संघ तीन बार प्रतिबंधित भी हुआ। बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार आरएसएस दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है।

आरएसएस ने जाट, मराठा, यादव, जाटव और पासवान जैसी मज़बूत दलित पिछड़ी जातियों के ख़िलाफ़ अन्य पिछड़ी जातियों के मन में नफ़रत पैदा की और उन्हें अपना वोटबैंक बनाया। जातियों के मुखौटों को पद और अन्य प्रलोभन देकर बीजेपी-संघ ने इन तमाम जातियों का वोट हड़प लिया। इस तरह सामाजिक न्याय की राजनीति ध्वस्त हो गई और हिंदुत्व की राजनीति केंद्र से लेकर राज्यों तक मज़बूत होती गई।
संघ की रोजाना 55 हज़ार शाखाएँ लगती हैं। इसके 50 लाख कार्यकर्ता रोजाना खाकी नेकर, सफेद शर्ट और काली टोपी में व्यायाम, प्रार्थना और 'विचार' करते हैं। प्रति वर्ष संघ के शिविर आयोजित होते हैं। शिविर में मातृभूमि की सेवा, भारत के निर्माण और हिन्दुत्व को स्थापित करने का संकल्प दोहराया जाता है। इसमें आने वाली बाधाओं से निपटने की तैयारी भी शिविर में होती है। लाठी चलाना, कुश्ती लड़ना, तलवारबाज़ी करना जैसे करतब शिविर में सिखाए जाते हैं। इसलिए कुछ लोग संघ को अर्द्ध सैनिक दस्ता मानते हैं। मोहन भागवत चीन और पाकिस्तान से निपटने के लिए स्वयं सेवकों को सीमा पर भेजने की बात कह चुके हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि भारत की जनता के टैक्स पर मोहन भागवत को जैड श्रेणी की सुरक्षा क्यों दी जा रही है?
लेखक सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक हैं और लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में असि. प्रोफ़ेसर हैं।