डॉ. आंबेडकर का मानना था कि हिंदू राष्ट्र बनने का मतलब है शूद्रों, अंत्यजों और स्त्रियों की ग़ुलामी की वापसी। हिंदू महासभा और आरएसएस के प्रस्तावित हिंदू राष्ट्र के सिद्धांत में अल्पसंख्यकों को दूसरे दर्जे का नागरिक स्वीकृत किया गया है। इस प्रकार हिंदू राष्ट्र का मतलब है, देश पर वर्चस्वशाली गौरवर्णी सवर्ण मर्दों की सत्ता।
2025 में हिन्दू राष्ट्र?
इतिहास के इस सिद्धांत को मानने वाली पार्टी आज सत्ता में है। संघ के प्रचारक रहे नरेन्द्र मोदी पूर्ण बहुमत के साथ दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने हैं। बहुत रणनीति के साथ वह बीजेपी और संघ के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं। कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि साल 2025 में आरएसएस की स्थापना के सौ वर्ष पूरे होने पर भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित कर दिया जाएगा। तब क्या नरेंद्र मोदी अपनी पितृ संस्था आरएसएस के हिंदुत्ववादी एजेंडे को पूरा करने के बिल्कुल क़रीब आ चुके हैं? लेकिन यहाँ एक सवाल पूछना ज़रूरी है।इतिहास की कुछ छवियाँ वर्तमान समय का भूत की तरह पीछा करती हैं। लेकिन कुछ छवियों से इतिहास को 'ब्लैक आउट' करने का काम भी लिया जाता है। नरेंद्र मोदी और उनकी बीजेपी ने कांग्रेस- मुक्त भारत का नारा दिया है। जवाहरलाल नेहरू की छवि आज भी उनका पीछा कर रही है।
आंबेडकर की स्वीकार्यता
यह किसकी छवि है? बीसवीं सदी के दलित नायक डॉ. आंबेडकर 21वीं सदी की राजनीति और तमाम जन आन्दोलनों के महानायक बनकर उभरे हैं। हालांकि प्रत्येक क्रांतिकारी या ज्ञानवान व्यक्ति के विचारों का समय आता ही है। डॉ. आंबेडकर आज दलित आंदोलन और राजनीति के सबसे बड़े आईकॉन हैं। देर से ही सही, लेकिन अब वामपंथी विचारकों ने डॉ. आंबेडकर के जाति आधारित चिंतन को वर्गीय अवधारणा के समकक्ष स्वीकार कर लिया है। पुरानी ग़लती को सुधारते हुए वामपंथी विचारकों ने आंबेडकर के विचारों के साथ अपने चिंतन को जोड़ा है। कांग्रेस भी आज डॉ.आंबेडकर को अपनी विरासत से जोड़ने का प्रयास कर रही है।आंबेडकर के ख़िलाफ़ आरएसएस
आजादी के आंदोलन के दरमियान डॉ. आंबेडकर के दलित आन्दोलन को आरएसएस और हिन्दू महासभा ने कभी पसंद नहीं किया। हालांकि वी. डी. सावरकर और एम. एस. गोलवलकर ने डॉ. आंबेडकर का कांग्रेस पार्टी और भारत सरकार के विरुद्ध इस्तेमाल करने का ज़रूर प्रयास किया, लेकिन इसमें वे सफल नहीं हुए।
संविधान सभा के ख़िलाफ़ रामराज्य परिषद और हिंदू महासभा ने दिल्ली में धरना प्रदर्शन करते हुए एक 'अछूत' द्वारा संविधान बनाने को अपवित्र और अशुभ करार दिया। इतना ही नहीं, इन संगठनों का कहना था कि मनुस्मृति के रहते हुए नए संविधान की कोई ज़रूरत नहीं है।
'वर्शिपिंग द फ़ॉल्स गॉड'?
साल 1952 में बनी जनसंघ से लेकर 1980 में स्थापित भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने कभी डॉ आंबेडकर और उनके विचारों का सम्मान नहीं किया। अरुण शौरी जैसे बीजेपी नेता ने बाबा साहब के लिए अपशब्दों का प्रयोग करते हुए 'वर्शिपिंग द फॉल्स गॉड' नामक किताब लिखी। इसमें अरुण शौरी ने डा. आंबेडकर के समाज सुधारक, स्वतंत्रता आन्दोलनकारी और संविधान के लेखक की भूमिकाओं को निम्नस्तरीय बताया। अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने भी कभी डॉ आंबेडकर के लिए कोई विशेष सम्मान प्रदर्शित नहीं किया।नरेंद्र मोदी की बीजेपी और मोहन भागवत के नेतृत्व वाला संघ डॉ आंबेडकर के आगे साष्टांग करते हुए दिख रहे हैं। क्या यह हृदय परिवर्तन है? क्या सचमुच दक्षिणपंथी संगठन हिंदुओं को एकजुट करने के लिए अन्य जाति समुदाय के महापुरुषों में सच्ची निष्ठा रखते हैं? क्या बीजेपी और संघ ने डॉ. आंबेडकर के विचारों और सपनों को अपना लिया है?
हिन्दुत्व का टूल तो नहीं?
बाबा साहब की मूर्ति बनाने और उनके चित्र पर फूल-माला चढ़ाने से उनके प्रति पूज्य भाव तो दिखता है, लेकिन इसमें उनके विचारों को आगे बढ़ाने का कोई विश्वास नज़र नहीं आता। तब क्या कारण है कि दक्षिणपंथी संघ और बीजेपी डॉ आंबेडकर के नाम का बार-बार जाप करते हुए दिख रहे हैं? एक कारण, बाबा साहब के अनुयायियों ख़ासकर दलितों के वोट बैंक को अपने साथ जोड़ने की चाहत हो सकती है।वास्तविकता यह है कि डा. आंबेडकर बीजेपी के लिए एक बड़े प्रोजेक्ट के आधार हैं। एक टूल हैं। नरेंद्र मोदी की बीजेपी बाबा साहब के मार्फत कांग्रेस के इतिहास को मिटाना चाहती है। इसी टूल से बीजेपी कांग्रेस- मुक्त भारत के सपने को पूरा करना चाहती है। लेकिन विडंबना यह है कि जाने अनजाने वामपंथी और खुद अंबेडकरवादी भी इस प्रोजेक्ट में सहायक बने हुए हैं।
गांधी बनाम आंबेडकर?
विश्व प्रसिद्ध लेखिका और वामपंथी एक्टिविस्ट अरुंधति राय से लेकर आंबेडकरवादी कंवल भारती जैसे लेखक डॉ. आंबेडकर के सामने महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू को प्रतिपक्षी की तरह पेश करते हैं। 'एक था डाक्टर,एक था संत' नामक बहुचर्चित किताब में अरुंधति राय ने आंबेडकर और महात्मा गांधी के विचारों और कार्यों की तुलना की है। अफ्रीका और इंग्लैंड प्रवास तथा भारत वापस आने के शुरुआती समय में महात्मा गाँधी के जाति और धर्म संबंधी विचारों को अरुंधति राय ने बहुत आक्रामक ढंग से एक नकारात्मक छवि के साथ पेश किया है। इन तथ्यों को ना तो खारिज किया जा सकता है और ना ही किया जाना चाहिए।लेकिन सवाल चुने हुए समय को लेकर है। सर्वविदित है कि महात्मा गाँधी अपने शुरुआती जीवन में कुछ हद तक यथास्थितिवादी और पूर्वाग्रहग्रस्त हैं। 1921 में खुद को सनातनी घोषित करने वाले गाँधी हिन्दू धर्म की वर्णव्यवस्था के समर्थक भी हैं। लेकिन आगे चलकर उन्होंने अपने विचारों में आमूलचूल परिवर्तन किया।
गांधी के प्रति कटुता क्यों?
कंवल भारती एक दलित कवि, आलोचक और आंबेडकरवादी विचारक हैं। वे मौलिक ढंग से सोचने वाले विद्वान हैं। लेकिन डॉ. आंबेडकर के साथ मुठभेड़ में वे अक्सर महात्मा गांधी को प्रतिपक्षी बनाते हैं। हालांकि कंवल भारती संघ और बीजेपी की भी तार्किक आलोचना करते हैं। लेकिन जब वह गाँधी की बात करते हैं तो ज्यादा कटु हो जाते हैं। वह यह मानकर चलते हैं कि महात्मा गांधी डॉ. आंबेडकर और दलित समाज के स्वाभाविक और सबसे बड़े शत्रु हैं।नेहरू-आंबेडकर
जितना सम्मान गांधी और नेहरू आंबेडकर का करते थे, उतना ही सम्मान और सौहार्द आंबेडकर के मन में उनके प्रति रहा है। इसके कुछ उदाहरण देखे जा सकते हैं।1927 के विख्यात महाड़ सत्याग्रह में आंबेडकर ने महात्मा गांधी के चित्र का इस्तेमाल किया था। दूसरा, संविधान सभा से लेकर सरकार में क़ानून मंत्री के रूप में काम करना, इस बात का पुख्ता सबूत है कि नेहरू, गांधी और कांग्रेस के साथ खड़े होकर डॉ. आंबेडकर भारत के नवनिर्माण के लिए प्रतिबद्ध हैं।
नेहरू पर कटाक्ष
इसके अलावा जब वे संविधान और लोकतंत्र के समक्ष चुनौतियों की बात करते हैं तो नेहरू पर कटाक्ष भी करते हैं। 25 नवंबर 1949 को संविधान सभा को संबोधित करते हुए आंबेडकर कहते हैं कि लोकतंत्र में नेता के प्रति लोगों की भक्ति तानाशाही प्रवृति को आमंत्रित करती है। नेहरू की लोकप्रियता को देखकर ही वे ऐसा कहते हैं। नेहरू इसे सकारात्मक ढंग से लेते हैं। संभवत एक सीख के तौर पर।आंबेडकर और नेहरू भारतीय लोकतंत्र के भविष्य का निर्माण कर रहे थे, इसलिए वे इस संवाद से ना आहत होते हैं और ना ही कहने में झिझकते हैं। लेकिन आज के अंबेडकरवादी क्या स्वयं डा. आंबेडकर के भक्त नहीं हो गए हैं? ऐसे भक्त जो गांधी और नेहरू की अविवेकपूर्ण आलोचना करने से भी नहीं हिचकते।
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