बिहार में कुछ महीने बाद चुनाव होने वाले हैं। राज्य में फ़िलहाल दो गठबंधनों के इर्द गिर्द चुनाव घूम रहा है, लेकिन जनता दल यूनाइडेट यानी जदयू नेता नीतीश कुमार इस बार ज़्यादा परेशान नज़र आ रहे हैं। राष्ट्रीय जनता दल यानी राजद के संस्थापक लालू प्रसाद भले ही जेल में हैं, लेकिन उनके पुत्र तेजस्वी यादव ने नीतीश को चौतरफ़ा घेर रखा है। ऐसे में नीतीश ने एनआरसी के ख़िलाफ़ और ओबीसी की जाति जनगणना कराने का प्रस्ताव विधानसभा में पारित कराकर पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यकों का हितैशी चेहरा दिखाने की कवायद की है। जदयू गठबंधन से अलग होने के बाद राजद ने कुछ ऐसे क़दम उठाए हैं जिससे नीतीश कुमार की चिंता बढ़ी है।
तेजस्वी यादव से क्यों परेशान हैं नीतीश कुमार?
- विचार
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- 4 Mar, 2020

बिहार में कुछ महीने बाद चुनाव होने वाले हैं। राज्य में फ़िलहाल दो गठबंधनों के इर्द गिर्द चुनाव घूम रहा है, लेकिन जनता दल यूनाइडेट यानी जदयू नेता नीतीश कुमार इस बार ज़्यादा परेशान नज़र आ रहे हैं।
बिहार में जातीय समीकरण अहम है। कर्पूरी ठाकुर के दौर से ही राज्य में ओबीसी और एससी नेताओं की एक लंबी शृंखला रही है। पिछले 15 साल के दौरान राजद के कमज़ोर रहने की एक बड़ी वजह यह है कि नीतीश कुमार ने राज्य में अति पिछड़े वर्ग को गोलबंद किया और भारतीय जनता पार्टी यानी बीजेपी का साथ लेकर सवर्णों का वोट अपने पाले में कर लिया। राजद में अधिकतर यादवों और ठाकुरों के अलावा पार्टी प्रत्याशियों के वोट ही बचे। साथ ही बड़े आक्रामक तरीक़े से यह दिखाने की कवायद की गई कि राजद यादवों की पार्टी है। हालाँकि राजनीतिक विश्लेषक हमेशा यह कहते रहे हैं कि कम से कम लालू प्रसाद ने कोई ऐसा जातीय समीकरण कभी नहीं बनाया और जब वह सत्ता में रहे तो उन्होंने हमेशा वंचितों, दलितों, पिछड़ों की बात की। नलिन वर्मा द्वारा लिखित लालू प्रसाद की जीवनी “गोपालगंज से रायसीना” में लालू ने ख़ुद इस बात पर आश्चर्य जताया कि उन्हें सिर्फ़ यादवों से कैसे जोड़ दिया जाता है, जबकि कभी भी वह किसी यादव सम्मेलन या जाति विशेष के कार्यक्रम में नहीं गए हैं।