राहुल गांधी के नेतृत्व में चल रही भारत जोड़ो यात्रा अपने गंतव्य की ओर एक नैरेटिव (कथानक) गढ़ते हुए आगे बढ़ रही है। भय और नफरत मिटाने के संकल्प के साथ राहुल गांधी महँगाई और बेरोजगारी जैसे बुनियादी मुद्दों पर जोर दे रहे हैं। यात्रा में विभिन्न पड़ावों पर अपने भाषण के जरिए राहुल गांधी एक सांस्कृतिक विमर्श भी खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं। मजेदार बात यह है कि राहुल गाँधी भाजपा और संघ के सामने उसकी वैचारिक जमीन पर जाकर ताल ठोक रहे हैं। हिन्दू धर्म के मिथकों और प्रतीकों का विमर्श रचते हुए राहुल गांधी संघ को घेरने की कोशिश कर रहे हैं। पहले महाराष्ट्र में उन्होंने हिंदुत्व के सिद्धांतकार वी. डी. सावरकर के अंग्रेजों के आगे घुटने टेकने को मजबूती से उठाया। लेकिन हिन्दी पट्टी में आकर उन्होंने हिंदुत्व की जमीन पर भाजपा-संघ की राजनीति का समानांतर विमर्श प्रस्तुत किया है।
भाजपा के हिंदुत्व का कथानक रामायण है। राहुल गाँधी ने हरियाणा पहुँचकर कुरुक्षेत्र में महाभारत का नैरेटिव उठाया है। निहायत हल्ला बोलने के अंदाज में राहुल गाँधी ने संघ को कौरवों की जमात में खड़ा कर दिया। महाभारत में अधर्म पर आधारित सत्ता लोलुप कौरवों पर पांडवों की विजय धर्म और न्याय को स्थापित करती है। राहुल गाँधी ने एक तरफ तो रामायण के बरक्स महाभारत के कथानक को पेश किया तो दूसरी तरफ धर्म बनाम अधर्म, न्याय बनाम अन्याय, सत्य बनाम सत्ता का विमर्श खड़ा कर दिया।
दरअसल, राहुल गाँधी भाजपा और आरएसएस को उसकी पिच पर जाकर मात देना चाहते हैं। वे सीधे नहीं बल्कि तिरछी शतरंजी चाल खेल रहे हैं। भारतीय संस्कृति और हिन्दू धर्म कभी भी एकाश्म (मोनोलिथ) नहीं रहे हैं। मुसलमानों ने खुद को अलग करने के लिए सिंधु नदी के पार के लोगों को हिंदू कहा। इसीलिए वैदिक और ब्राह्मण धर्म को मानने वाले, शैव, वैष्णव, शाक्त, बौद्ध, जैन, आजीवक, नास्तिक सभी हिंदू कहे जाने लगे। जबकि शैव, वैष्णव, बौद्ध आदि संप्रदायों के परस्पर संघर्ष और संवाद का अपना इतिहास है। इन संप्रदायों की अपनी अलग पहचान रही है। आज भी कमोबेश यह पहचान कायम है।
भाजपा ने बहुसंख्यकवाद की राजनीति को मजबूत करने के लिए हिन्दू एकता का छद्म रचा। जबकि सच्चाई यह है कि हिन्दू सामाज में वर्ण और जाति की भेदभाव, असमानता और शोषण पर आधारित व्यवस्था सदियों से चली आ रही है। भाजपा के हिंदुत्व का विरोधाभास यह है कि राजनीतिक रूप से तो हिन्दू एकता की बात करती है लेकिन वह सामाजिक रूप से भेदभावपरक व्यवस्था की संरक्षक और सवर्ण वर्चस्व की पोषक है। भाजपा और संघ का हिंदुत्व; रामायण को केंद्र में रखकर 'शंबूकों' और 'सीताओं' को अपनी हद में रहने की हिदायत भी देता है।
आरएसएस हिन्दू धर्म को मोनोलिथ बनाना चाहता है। संघ का लक्ष्य राम को केंद्र में रखकर हिंदुत्व को राजनीतिक लाभ में तब्दील करना है। राहुल गांधी लंबे समय से खुद को शिवभक्त बताते रहे हैं। वे यह भी कहते हैं कि उनकी दादी इंदिरा गांधी भी शिव भक्त थीं। ‘हर हर महादेव’ और शिवभक्ति की बात करते हुए राहुल गांधी संघ पोषित हिंदू धर्म की मोनोलिथ अवधारणा को विखंडित कर रहे हैं।
भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म में शिवभक्ति के अपने मायने हैं। इसका दायरा व्यापक और उदार है। शिव प्रकृति और प्राचीन संस्कृति के प्रतीक हैं। उत्तर से लेकर दक्षिण तक शिव की महिमा व्याप्त है। शिव उत्तर भारत के वंचित तबकों के आराध्य हैं तो द्रविड़ संस्कृति के सबसे प्राचीन देवता हैं। अर्धनारीश्वर माने जाने वाले शिव दाम्पत्य सौंदर्य और प्रेम के देवता माने जाते हैं। राहुल गाँधी हिंदुत्व के बरक्स ‘शिवत्व’ को स्थापित करके हिंदू धर्म की बहुदेववाद की अवधारणा को सामने ला रहे हैं। ‘शिवत्व’ के जरिए राहुल गांधी उत्तर से लेकर दक्षिण तक हिंदू धर्म की उपस्थिति को कांग्रेस के साथ जोड़ना चाहते हैं। भारत जोड़ो यात्रा में मंदिर, चर्च, गुरुद्वारा और मज़ार पर जाते हुए राहुल गाँधी विभिन्न धर्म और संप्रदायों के पुरोहितों से मिलकर सर्वधर्म समभाव का भी सम्मान कर रहे हैं। इस तरह वे भारत की धर्मनिरपेक्षता और उसके बहुलतावादी स्वरूप के साथ कांग्रेस की राजनीति को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं।
(लेखक देश के जाने माने दलित चिंतक हैं)
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