भारत ने समग्र क्षेत्रीय आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया है। यह इसलिए क्योंकि इसको आरसीईपी के कुछ प्रावधानों पर आपत्ति है। इसमें से एक प्रावधान डेरी उत्पादों से जुड़ा हुआ है। भारतीय उद्योगों का मानना है कि अगर भारत इस समझौते में शामिल होता है तो देश के किसान बर्बाद हो जाएँगे। भारत में आशंका जताई जा रही थी कि समझौते में शामिल हो रहा न्यूज़ीलैंड अपने सस्ते डेरी उत्पाद भारत में पाट देगा और यहाँ के पशुपालक किसान इसका मुक़ाबला नहीं कर सकेंगे।
आरसीईपी: न्यूज़ीलैंड के आगे क्यों नहीं टिक पाएगा भारतीय दूध?
- विचार
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- 6 Nov, 2019

भारत ने आरसीईपी पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया है। डेरी उत्पादों पर आशंका है कि देश के किसान बर्बाद हो जाएँगे। आख़िर क्यों न्यूज़ीलैंड से जैसे छोटे देश के आगे टिकने के काबिल नहीं हैं?
भारत में गाय का बड़ा सम्मान है। बहुत पुराने समय से देश भर में गोशालाएँ चलती हैं। भारत में गाय को धार्मिक मानने व उसका सही इस्तेमाल न कर पाने को लेकर मोहनदास करमचंद गाँधी ने गहरी चिंता जताई थी। उनका कहना था कि भारत में लोगों को पशुधन का इस्तेमाल नहीं आता, जिसकी वजह से करोड़ों रुपये का नुक़सान हो रहा है। 1947 में एक प्रार्थना सभा में उन्होंने कहा था, ‘हिंदुस्तान भर में गोशालाएँ सिर्फ़ ऐसी जगहें बनकर रह गई हैं जहाँ ढोरों को बुरी हालत में रखा जाता है। ऐसी संस्थाएँ होने के बजाय इस तरह की जगहें हों, जहाँ कोई शख्स हिंदुस्तान के ढोरों को ठीक तरह से पालने की कला सीख सके, जो आदर्श डेरियाँ हों और जहाँ से लोग अच्छा दूध, अच्छी गाय और अच्छी नस्ल के सांड और मज़बूत बैल ख़रीद सकें।’