आज़ादी से ठीक पहले मोहनदास करमचंद गाँधी यानी महात्मा गाँधी दिल्ली में दलित बस्ती में जाकर रहने लगे थे और वहीं मंदिर में प्रार्थना करते थे। गाँधी की प्रार्थना सभा में 6 चीजें होती थीं। इनमें - 1-बौद्ध धर्म का जापानी भाषा का मंत्र, 2- संस्कृत भाषा में भगवद् गीता के श्लोक, 3- अरबी भाषा में क़ुरान से एक कलमा, 4- फारसी भाषा में जरथ्रुश्त धर्म का मंत्र, 5- हिंदी या किसी भी प्रांतीय भाषा में भजन और 6- राम नाम की धुन शामिल थीं। यह प्रार्थनाएं दलित बस्ती में बने वाल्मीकि मंदिर में होती थीं।
1 अप्रैल, 1947 को बौद्ध मंत्र व भगवत गीता का श्लोक ख़त्म होने के बाद कुमारी मनु गाँधी के मुंह से ज्यों ही क़ुरान के कलमे का पहला शब्द निकला, प्रार्थना में से एक युवक खड़ा होकर चिल्लाने लगा। युवक ने कहा, “बस, बस, बंद कीजिए, बहुत हो गया। अब हम यह नहीं बोलने देंगे, बहुत सुन लिया।”
26-27 साल के उस युवक को लोगों ने रोकने का प्रयास किया, बैठने को कहा, लेकिन वह आगे बढ़ता गया। उसने कहा, “आप यहां से चले जाइए। यह हिंदू मंदिर है। यहां हम मुसलमानों की प्रार्थना नहीं होने देंगे। आपने बहुत बार यह कह लिया, वहां हमारी मां-बहनों की हत्या पर हत्या हो रही है। हम यह सब अब सहन नहीं कर सकते।” जब उसने गाँधी जी से चले जाने को कहा तो गाँधी ने कहा, “आप जा सकते हैं। आपको प्रार्थना नहीं करनी हो तो दूसरे को करने दें। यह जगह आपकी नहीं है। यह ठीक तरीक़ा नहीं है।”
युवक गाँधी जी के नजदीक बढ़ता जा रहा था। लोग उसे रोक रहे थे, गाँधी जी ने लड़के को छोड़ देने को कहा। युवक गाँधी जी के और क़रीब आ गया। तभी मंच पर बैठी एक महिला गाँधी जी की सहायता के लिये उस लड़के व गाँधी जी के बीच आ गई। इसके बावजूद गाँधी जी ने कहा कि उनके और युवक के बीच कोई और न आए और उनकी आवाज धीमी पड़ गई।
आख़िरकार लोगों ने जबरदस्ती उस युवक को प्रार्थना सभा से बाहर कर दिया। गाँधी ने लोगों से कहा कि यह तरीका ठीक नहीं है, आप लोगों को उसे समझाना चाहिए था। उसके बाद उन्होंने अपनी कुछ बातें लोगों के सामने रखीं, जो हिंदू धर्म से जुड़ी हुई थीं। (प्रार्थना प्रवचन, पहला खंड, प्रकाशन वर्ष दिसंबर 1948 सस्ता साहित्य मंडल, नई दिल्ली. पेज-4)।
गाँधी जी जब दूसरे दिन प्रार्थना करने आए तो उन्होंने वहां बैठे हुए लोगों से पूछा कि प्रार्थना से किसी का कोई विरोध तो नहीं है। उसी समय दो व्यक्ति खड़े हुए और बोले, “आपको यदि प्रार्थना करनी हो तो हिंदू मंदिर से बाहर आकर बैठें और दूसरे मैदान में अपनी प्रार्थना करें।”
गाँधी जी ने कहा, “यह मंदिर दलितों का है। ट्रस्टी लोग आकर रोकेंगे तो अलग बात है। आप मुझे नहीं रोक सकते। अगर आप लोग करने देंगे तो प्रार्थना यहीं करूंगा।” युवक ने कहा, “यह मंदिर पब्लिक का है। हमने देख लिया कि पंजाब में क्या हुआ। हम आपको यहां हरगिज प्रार्थना नहीं करने देंगे।”
गाँधी जी बोले, “मैं बहस नहीं चाहता। मैं बड़े अदब से कहना चाहता हूं कि आप लोग दलितों की तरफ़ से नहीं बोल सकते। मैंने पाखाना उठाया। अगर मैं कहूंगा तो आप लोगों में से कोई भी पाखाना उठाने का काम करने वाला नहीं है। फिर भी आप लोग रोकेंगे तो मैं रुक जाऊंगा, प्रार्थना नहीं करूंगा।”
तभी लोगों ने चिल्लाकर कहा, “हम प्रार्थना सुनेंगे। हमें प्रार्थना चाहिए।” आख़िरकार सिर्फ दो युवकों के विरोध पर भी गाँधी प्रार्थना छोड़कर चले गए। उन्होंने कहा कि कल भी आकर मैं यही प्रश्न करूंगा और आप प्रार्थना करने को मना करेंगे तो मैं चला जाऊंगा।
वाल्मीकि मंदिर के पास के अहाते में रोज सुबह स्वयंसेवक संघ के सैकड़ों युवक व्यायाम करते थे। गाँधी जी की प्रार्थना सभा में लगातार बाधा पहुंचाने की कवायद की जा रही थी। गाँधी कुछ युवकों के विरोध पर भी प्रार्थना सभा छोड़कर चले जाते थे लेकिन अगले दिन वह फिर पहुंच जाते थे।
गाँधी जी ने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा, “व्यायाम करने वाले युवाओं के नेता से मेरी बात हुई। उन्होंने कहा कि हम किसी का कुछ नहीं बिगाड़ना चाहते। हमने किसी से दुश्मनी करने के लिए संघ नहीं बनाया है। यह सही है कि हम लोगों ने आपकी अहिंसा को स्वीकार नहीं किया है, फिर भी हम कांग्रेस की क़ैद में रहने वाले हैं। कांग्रेस जब तक अहिंसा का हुक्म करेगी, हम शांति से रहेंगे। उन्होंने बड़ी मोहब्बत से मीठी बातें कीं।”
गाँधी जी ने कहा, “आपको अगर झगड़ा करके ईश्वर का नाम लेना है तो वह नाम तो ईश्वर का होगा, पर काम शैतान का होगा। और मैं शैतान का काम नहीं कर सकता। मैं ईश्वर का भक्त हूं।” प्रार्थना प्रवचन, पहला खंड, प्रकाशन वर्ष दिसंबर 1948 सस्ता साहित्य मंडल, नई दिल्ली. पेज 11)
गाँधी जी की सभा में कुछ लोगों ने हाथ हिलाकर कहा कि हम प्रार्थना नहीं चाहते। लेकिन जब गाँधी जी ने पूछा कि क्या आप लोग मेरे मुखालिफ़ हैं तो सैकड़ों लोगों की आवाज आई कि सब मुखालिफ़ नहीं हैं, आप ज़रूर प्रार्थना कीजिए। गाँधी ने कहा, ‘आपकी तादात काफी है। अब मैं प्रार्थना कर सकता हूं, पर इस समय मैं आपके हाथों मरना नहीं चाहता। मुझे अभी काफी काम करने के लिए जिंदा रहना है।’
इस पर कुछ युवाओं ने कहा कि आपने नोआखाली में रामधुन कैसे बंद कर दी थी, यहां भी प्रार्थना बंद करिए। गाँधी जी ने कहा, आप लोगों से मैं बहस नहीं करना चाहता। गाँधी वहां से चले गए। दरअसल, नोआखली में रामधुन बंद नहीं की गई थी। रामधुन होने पर कुछ मुसलिम वहां से उठकर चले गए थे। संघ के प्रभाव में आए युवा गलत मसले को लेकर गाँधी पर सवाल उठा रहे थे।
गाँधी जी ने कहा, ‘जो मेरी प्रार्थना सभा का विरोध कर रहे हैं, वे हिंदू धर्म को मार रहे हैं।’ उन्होंने कहा कि मुसलमान भी उनसे कहते हैं कि तुमको क्या हक़ है कि तुम क़ुरान की आयत बोलो, फिर भी नोआखाली में उन्होंने मुझे नहीं रोका। क्या वे रोक नहीं सकते थे?
इस तरह से गाँधी जी प्रार्थना न करने के बावजूद लंबे समय तक रोजाना धार्मिक व जातीय समरसता के संदेश देते रहे। यह कुछ हफ़्तों तक चला। गाँधी लगातार आते रहे। आख़िरकार प्रार्थना सभा में विरोध करने वालों की संख्या कम होती गई।
हालांकि इस तरह झगड़ने वाले बढ़ रहे थे। इसी के साथ भीड़ भरे इलाक़े में गाँधी जी को खतरा भी बढ़ रहा था। आख़िरकार तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने गाँधी की सुरक्षा का ध्यान रखते हुए उनको दलित बस्ती में जाकर प्रार्थना सभा करने और वहां ठहरने से रोक दिया। उसके बाद गाँधी जी को बिड़ला भवन ठहराया गया, जहां वह अपनी जिंदगी के आख़िरी वक्त तक रुके और लोगों से संवाद करते रहे।
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