गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने रामनाथ गोयनका पत्रकारिता पुरस्कार समारोह में एक भाषण दिया है जिसमें उन्होंने कहा कि सरकार और मीडिया को हमेशा एक-दूसरे का विरोधी होना चाहिए, यह सही मानसिकता नहीं है। उनका मानना है कि मीडिया यदि सरकार का मित्र न भी हो तो उसे, उससे शत्रुता का भाव तो नहीं ही रखना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि कई अख़बार इस बात का ख़्याल रखते हैं (कि वे सरकार के प्रति शत्रुता का भाव न रखें)।
संविधान विरोधी है गृह मंत्री का बयान
राजनाथ के इस बयान के तीन हिस्से हैं। आइए, हम एक-एक करके उसकी पड़ताल करते हैं। पहला, उन्होंने कहा कि सरकार और मीडिया को हमेशा एक-दूसरे का विरोधी होना चाहिए, यह मानसिकता सही नहीं है। मेरे ख़्याल से गृह मंत्री का यह बयान न केवल ग़लत है बल्कि संविधान विरोधी भी है; ख़ासकर गृह मंत्री के पद पर बैठे हुए व्यक्ति के मुँह से तो यह बात आनी ही नहीं चाहिए।
ध्यान दीजिए, वे अपने बयान में सरकार और मीडिया को बराबर के पलड़े में तौल रहे हैं - सरकार और मीडिया को एक-दूसरे का विरोधी नहीं होना चाहिए, जबकि दोनों के दो विपरीत रोल हैं। मीडिया को तो यह अधिकार है कि उसका कोई हिस्सा सरकार का समर्थन करे या सरकार का विरोध करे, (यानी वह सरकार-विरोधी हो सकता है) लेकिन सरकार को मीडिया विरोधी होने का अधिकार कब से मिल गया?
सरकार का काम देश या प्रदेश का राजकाज चलाना है और वह भी संविधान-सम्मत तरीक़े से।