पिछले सप्ताह किरावली (आगरा) की विशाल किसान पंचायत में हज़ारों-हज़ार किसानों को सम्बोधित करते हुए किसान नेता राकेश टिकैत ने जो स्वर छेड़े वे न सिर्फ़ मौजूदा किसान आंदोलन में नितांत नए राग के रूप में अंकित हो गए बल्कि वो किसान आंदोलन की परिधि को खेत और गाँव से विस्तार देकर शहरों तक खींच देते हैं। ये ऐसे नूतन स्वर हैं जिसने किसान आंदोलन के करघे में मज़दूर एकता का नया धागा बुन डाला है। अपने संबोधन में टिकैत ने 60 लाख ट्रैक्टरों के साथ संसद को घेरने की चेतावनी और डीज़ल-पेट्रोल की बढ़ती क़ीमतों को उठाने के साथ-साथ रेलवे और बीएसएनएल के निजीकरण का विरोध किया। यह न केवल बीजेपी की आर्थिक नीतियों के विरुद्ध ऐसा 'यलगार' है जिसे ऐसे साफ़-सुथरे तरीक़े से उठाने की हिम्मत विरोधी पार्टियाँ भी नहीं कर पा रही हैं बल्कि वो आज़ादी के बाद उभरे किसान आंदोलनों में मज़दूरों के साथ एका की पहली पहल का आह्वान भी है।