जैसे-जैसे उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनावों की तिथियाँ नज़दीक आती जा रही हैं वैसे-वैसे लोगों के बीच यह सवाल और भी गहराता जा रहा है कि पिछले 6 महीनों में उठ खड़े हुए देशव्यापी किसान आंदोलन का खूँटा पकड़कर विपक्ष इन पंचायत चुनावों में बीजेपी की चूलें उघाड़ने में कामयाब होगा या नहीं? क्या इसके लिए उसने कोई बड़ी रणनीति तैयार की है? क्या इसे लेकर उनके बीच कोई आपसी समझ बन सकी है? क्या प्रदेश के किसान नेताओं ने अपने आंदोलन की गर्मी को इन चुनावों में बीजेपी विरोध के लिए झोंक देने की कोई योजना गढ़ी है?
पंचायत चुनाव: किसान आंदोलन से बीजेपी को डर?
- उत्तर प्रदेश
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- 12 Apr, 2021

एक ओर किसान आन्दोलन के चलते पश्चिम और मध्य उत्तर प्रदेश के गाँवों में व्याप्त बीजेपी विरोधी प्रबल प्रतिरोध तो दूसरी तरफ़ पंचायत आरक्षण मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच के 15 मार्च के फ़ैसले से पंचायतों में सवर्ण बाहुबलियों के दाखिले की राज्य सरकार की कोशिशों को पहुँची क्षति के बावजूद बीजेपी हथियार डालने को तैयार नहीं है।
ये सवाल शहरी मध्यवर्ग में ही ज़्यादा है। जहाँ तक गाँवों का सवाल है, उनके सवाल दूसरे हैं। वहाँ हाल यह है कि बीजेपी समर्थित प्रत्याशी पार्टी बिल्लों को लेकर घूमने से भी कतरा रहे हैं। तहसील और ब्लॉक मुख्यालयों पर लगे होर्डिंग-बैनरों में भले ही प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष की तसवीरें लगी हों लेकिन उम्मीदवारों के निजी वाट्सऐप संदेशों में मोदी जी और नड्डा जी के बजाय उम्मीदवारों के दादा और पिता की तसवीरें ही देखने को मिलती हैं। यूपी के किसान का सवाल यह है कि बिना सिम्बल वाला उनका उम्मीदवार जब बीजेपी लहर के दम पर जीत कर जायेगा तब अप्रत्यक्ष चुनावों की वोटिंग के समय धनबल, सत्ताबल और शक्तिबल के दबाव में किसके गुण गायेगा?