क्या राहुल गांधी ने मान्यवर कांशीराम का अपमान किया है? यह सवाल इसलिए पूछा जा रहा है क्योंकि इस समय एक संक्षिप्त और एडिट वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है। इसमें राहुल गांधी कांशीराम जी के बारे में टिप्पणी कर रहे हैं। राहुल गांधी कहते हैं कि कांशीराम जी को, उनके पीछे खड़े दलितों की आवाज के ज़रिए समझने की ज़रूरत है। हिंदुत्ववादी कांशीराम और आंबेडकर को भगवान बना देंगे। लेकिन यह देखना चाहिए कि वे भगवान कैसे बने? राहुल गांधी यह भी कहते हैं कि दलितों की आकांक्षाओं और संघर्षों के बिना कांशीराम कुछ भी नहीं हैं। 'कांशीराम कुछ भी नहीं हैं', इस आखिरी वाक्य के आधार पर राहुल गांधी को ट्रोल किया जा रहा है। विशेषकर बहुजन-दलित नौजवानों के बीच यह बात प्रसारित की जा रही है कि राहुल गांधी ने कांशीराम जी का अपमान किया है। हिन्दुत्ववादियों की यह पुरानी शैली है।

जिस तरह आरएसएस ने गांधी के सामने आंबेडकर को लाकर असली विमर्श को मोड़ दिया था और पीछे रहकर राजनीतिक फायदा उठाया था, उसी तरह भाजपा आज राहुल गांधी को कांशीराम और बहुजनों के सामने खड़ा करके हिंदुत्व के खिलाफ लड़ाई को गुमराह करना चाहती है।
गांधी के सामने डॉ. आंबेडकर को खड़ा करके हिन्दुत्ववादियों ने सावरकर के लिए रास्ता तैयार किया। बहुजन तबका एक समय तक हिंदुत्ववादियों की इस चाल को नहीं समझ सका। इसका नतीजा यह हुआ कि गांधी और नेहरू की आलोचना करते हुए दलित बहुजन नहीं समझ पाया कि वह सावरकर और गोलवलकर के लिए राजपथ तैयार कर रहा है। वे भूल गए कि बाबा साहब ने हिंदुत्व के विचार की बहुत आलोचना की थी। हिंदू राष्ट्र के विचार को उन्होंने दलितों के लिए सबसे बड़ी आपदा बताया था। आरएसएस को पहचानते हुए ही उन्होंने 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में संघ मुख्यालय के क़रीब हिंदू धर्म त्यागकर बौद्ध धर्म अपनाया था। दलितों के लिए यह बाबासाहब का बड़ा संदेश था।
लेखक सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक हैं और लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में असि. प्रोफ़ेसर हैं।