2024 के लोकसभा चुनाव में देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव एक बड़े खिलाड़ी के तौर पर उभरे हैं। इस चुनाव में अखिलेश यादव पीडीए फॉर्मूला लेकर आए हैं- पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक। पीडीए दरअसल कांशीराम के 15 बनाम 85 की राजनीति का ही नया संस्करण है। अखिलेश यादव की रैलियों में बढ़ती भीड़ से ऐसा लगता है कि समाजवादी पार्टी में लोगों का विश्वास लौट रहा है। अखिलेश यादव के टिकट वितरण के सामाजिक समीकरण की तारीफ हो रही है। महंगाई और बेरोजगारी से पीड़ित देश का जनमानस इस समय विपक्ष इंडिया गठबंधन की तरफ देख रहा है। खास बात यह है कि इंडिया गठबंधन जनता के मूल मुद्दों को लगातार उठा रहा है। 80 लोकसभा सीटों वाले सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश पर पूरे देश की निगाहें लगी हुई हैं। आज उत्तर प्रदेश में भाजपा के सामने सबसे बड़ी ताकत अखिलेश यादव हैं। पिछली तीन असफलताओं के बावजूद इस चुनाव में उनका पीडीए फार्मूला कारगर होते हुए दिख रहा है।

टिकट वितरण में दुरुस्त सामाजिक समीकरण के साथ-साथ राहुल गांधी के सामाजिक न्याय के एजेंडे ने अखिलेश यादव के पीडीए को अधिक विश्वसनीयता प्रदान की है। इसका सीधा प्रभाव चुनाव में दिखाई दे रहा है।
ऑस्ट्रेलिया से पढ़ाई करके लौटे अखिलेश यादव पिता मुलायम सिंह यादव का साथ देने के लिए राजनीति में आ गए। सपा के नौजवानों में 'अखिलेश भैया' तेजी से लोकप्रिय हो गए। पहली बार अखिलेश यादव 2010-11 में तब सुर्खियों में आए जब उन्होंने साइकिल से यात्रा करते हुए पूरे प्रदेश का दौरा किया। मायावती के कथित भ्रष्टाचार के खिलाफ अखिलेश यादव की साइकिल यात्रा से समाजवादी पार्टी को नई ऊर्जा मिली।
लेखक सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक हैं और लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में असि. प्रोफ़ेसर हैं।