राहुल गांधी की बात पर विवाद करने वाले लोग कौन हैं जिसमें उन्होंने कहा है कि हमारा ध्येय समाज के किसी नायक को भगवान बनाकर पूजना नहीं है बल्कि समाज के संघर्ष और उसकी आकांक्षाओं को अभिव्यक्ति देना है?
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के संस्थापक कांशीराम की 9 अक्टूबर को होने वाली पुण्यतिथि अचानक सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के लिए एक बड़े आयोजन में बदल गई है। इस बार ऐसा लगता है कि यह बीएसपी के मुख्य प्रतिद्वंद्वियों - समाजवादी पार्टी और कांग्रेस - के शीर्ष एजेंडे में आ गया है, जिनके नेताओं ने दलित आइकन की मौत की सालगिरह को बहुत धूमधाम से मनाने का फैसला किया।
समाजवादी पार्टी दलित वोट बैंक की तरफ रुख कर रही है। दलितों की मौजूदा समय में नेता मायावती की राजनीति की वजह से दलित अब अन्य पार्टियों में जा रहे हैं। बीजेपी से काफी तादाद में दलित जुड़ चुके हैं। लेकिन जो दलित बीजेपी के साथ नहीं जाना चाहते हैं, वो भी सहारा तलाश रहे हैं। ऐसे में सपा की पहल रंग ला सकती है।
रायबरेली में कांशीराम की मूर्ती का अनावरण करके अखिलेश दलित वोट को अपने पाले में लाने के साथ कांग्रेस को भी संदेश दे रहे हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी कांग्रेस के साथ गठबंधन में नहीं जाएगी।
कांशीराम ने अच्छी पढ़ाई की और पुणे की एक्सप्लोसिव रिसर्च एंड डेवलपमेंट लैबोरेटरी में वैज्ञानिक थे तो राजनीति में कैसे आ गए? जानिए उन्होंने कैसे दलित राजनीति को बदल दिया।
ज़मीनी संघर्ष करते हुए उन्होंने बहुत कम समय में ही बहुजन समाज की न केवल एक राष्ट्रीय पार्टी खड़ी कर दी बल्कि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में अपनी पार्टी की सरकार भी बना डाली।