समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव सोमवार को रायबरेली
के दीनशाह गौरा ब्लॉक में स्थित कांशीराम के नाम पर बने डिग्री कॉलेज में उनकी प्रतिमा
का अनावरण करेंगे। इस कार्यक्रम का आयोजन समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव
स्वामी प्रसाद मौर्य कर रहे हैं। मूर्ति के अनावरण के साथ अखिलेश यादव यहां एक रैली को भी
संबोधित करेंगे। रायबरेली मूल रूप से कांग्रेस का गढ़ रहा है। वर्तमान में भी कांग्रेस
की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी यहां से सांसद हैं।
रायबरेली उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से इकलौती है जहां से कांग्रेस
का सांसद है। 2024 के चुनाव के लिए अखिलेश यादव ने पहले ही साफ कर दिया है कि वे
अमेठी और रायबरेली की सीटों पर अपने उम्मीदवार मैदान में उतारेगी। इससे पहले इन सीटों
पर विपक्षी दल अपना उम्मीदवार कम ही उतारते थे। पिछले चुनावों में बीजेपी ने इसको बदल दिया और अमेठी में राहुल के खिलाफ स्मृति ईरानी को चुनाव मैदान में उतारा, जिसका उसको फायदा भी मिला, राहुल गांधी को हार का सामना करना पड़ा। रायबरेली में ऐसा करके अखिलेश कांग्रेस को भी
संदेश दे रहे हैं कि समाजवादी पार्टी कांग्रेस के साथ गठबंधन में नहीं जाएगी।
अखिलेश यादव की यह घोषणा ऐसे समय पर आई है जबकि
लोकसभा चुनाव एक साल का समय बचा है। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन
समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने लोकसभा चुनावों में अकेले उतरने का फैसला किया
हुआ है।
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राजनीतिक हल्कों में चर्चा है कि मायावती बसपा का अपना
आधार दलित वोट खोती जा रहीं हैं। अखिलेश यादव, सत्तारुढ़ बीजेपी, उनके वोट बैंक में
सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं। अखिलेश की घोषणा से एक दिन पहले मायावती ने पार्टी
कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि अगर उनके साथ गेस्ट हाउस कांड नहीं होता
तो प्रदेश में आज सपा-बसपा राज कर रही होती।
उत्तर प्रदेश की राजनीति करने वाली सपा और बसपा का
अपना वोट बैंक है, जिसमें सपा यादव-मुस्लिम वोटों को साथ लेकर चलती है, वहीं बसपा
दलित और कुछ हिस्से में मुस्लिम वोटर्स को अपने साथ जोड़कर चलती है। 2012 में उत्तर
प्रदेश की सत्ता गंवाने के बाद और केंद्र तथा राज्य में बीजेपी के उभार के बाद से बसपा
का वोटबैंक लगातार सिकुड़ता जा रहा है।
अखिलेश यादव, मायावती के उसी सिकुड़ते वोट बैंक पर
दावेदारी जताने का प्रयास कर रहे हैं। समाजवादी पार्टी द्वारा दलित वोटर्स को अपने पाले में
लाने का यह पहला प्रयास नहीं है। इससे पहले उसने डॉ. आंबेडकर के नाम पर बाबा साहब
वाहिनी का भी गठन किया था।
दलित वोटों को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही सपा कांशीराम स्कूल की
राजनीति करने वाले तमाम नेताओं को पहले ही अपने साथ जोड़ चुकी है, जिसमें स्वामी
प्रसाद मौर्य सबसे बड़ा नाम हैं। मौर्य के अलावा भी अखिलेश इंद्रजीत सरोज, रामअचल
राजभर, आरके चौधरी जैसे नेताओं को अपने साथ जोड़ चुकी है।
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गेस्ट हाउस कांड के बाद सपा और बसपा पहली बार 2019 के लोकसभा चुनाव में साथ आए थे। दोनों दलों के गठबंधन का मायावती को जबरदस्त फाएदा हुआ था। 2014 के
चुनाव में एक भी सीट न जीतने वाली बसपा को 10 सीटें हासिल हुईं। लेकिन अखिलेश को
इसका फाएदा नहीं मिला। उसके बाद से ही अखिलेश दलित वोटों को अपने पाले में लाने का
प्रयास कर रहे हैं।
मायावती के दलित वोटबैंक पर केवल अखिलेश ही नहीं बीजेपी भी नजरें गड़ाए बैठी
है। देखना होगा कि इसमें किसको सफलता हासिल होती है।
एक समय बसपा का प्रमुख चेहरा रहे स्वामी प्रसाद मौर्य मायावती को डॉ. आंबेडकर
और कांशीराम की विचारधारा से भटका हुआ नेता बता चुके हैं। अखिलेश यादव लोहिया के
साथ आंबेडकर-कांशीराम की विचारधारा को लेकर चलना चाहते हैं, क्योंकि वक्त की जरूरत
भी यही है, आंबेडकर-कांशीराम की राह पर चलकर बीजेपी से मुकाबला किया जा सकता है।
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