loader
रुझान / नतीजे चुनाव 2024

झारखंड 81 / 81

इंडिया गठबंधन
57
एनडीए
23
अन्य
1

महाराष्ट्र 288 / 288

महायुति
230
एमवीए
51
अन्य
7

चुनाव में दिग्गज

बाबूलाल मरांडी
बीजेपी - धनवार

आगे

गीता कोड़ा
बीजेपी - जगन्नाथपुर

पीछे

चाहे जितनी कोशिश कर लें मोदीजी, मुस्लिम तैश में नहीं आने वाले!

प्रधानमंत्री की राजस्थान,अलीगढ़ और गोवा की सभाओं के बाद साफ़ हो गया कि जीत के लिए अंतिम हथियार के रूप में हिंदू-मुस्लिम ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल ही अब चुनाव के बाक़ी चरणों में होने वाला है। मोदीजी ने इस विषय पर अपनी सभाओं में क्या और कितना आपत्तिजनक कहा, उसे यहाँ इसलिए दोहराने की ज़रूरत नहीं है कि उनका ‘गोदी मीडिया’ यह काम मुस्तैदी से कर रहा है।

प्रधानमंत्री के कहे को लेकर मुसलमान क़तई उत्तेजित या नाराज़ नहीं हैं। वे जानते हैं कि मोदी जी उन्हें तैश में लाकर उनकी मदद में उतरने के लिए ही यह सब कर रहे हैं। मुसलमानों की ठंडी प्रतिक्रिया को लेकर संघ में ऊपरी तौर पर कोई नाराज़गी नहीं है। भाजपा के भी कुछ इलाक़ों ने इस पर राहत की साँस ली है। पहले चरण के बाद और दूसरे चरण के मतदान-पूर्व रुझानों को लेकर जिस तरह की ख़बरें मुस्लिम बस्तियों में पहुँच रही हैं वह भी ठंडी प्रतिक्रिया का एक कारण हो सकता है। 

ताज़ा ख़बरें

मुस्लिमों में भी ‘अल्पसंख्यक’ माने जाने वाले कुछ समझदारों का मानना है कि मतदान के प्रथम चरण के रुझानों का सिलसिला अगर एक जून तक जारी रहता है और इस बीच सीमा पार से उनकी ही जमात के कुछ सिरफिरे भाई-बंदों द्वारा पिछली बार जैसी मदद मोदीजी के राष्ट्रवाद के लिए नहीं पहुँचाई जाती है तो उनके अच्छे दिनों की शुरुआत भी जल्द हो जाएगी। मुसलमानों के तर्क पर यक़ीन किया जाए तो उनके ख़िलाफ़ सुनाई पड़ने वाली मोदी जी के भाषणों की ध्वनि हक़ीक़त में अपने ही ‘हिंदू भाइयों’ को संगठित कर यह जाँचने के लिए है कि कहीं वे धर्मनिरपेक्ष तो नहीं बन गए! विभाजन की ज़ुबान के ज़रिए मोदी अपने पारंपरिक हिन्दू वोट बैंक को सुरक्षित करने की कोशिश कर रहे हैं।

आरएसएस के अंग्रेज़ी मुखपत्र ‘ऑर्गनाइज़र’ ने कर्नाटक विधानसभा चुनावों में हुई भाजपा की करारी हार के बाद अपने संपादकीय में चेतावनी दी थी कि केवल मोदी की छवि और हिंदुत्व के बल पर ही 2024 का मुक़ाबला नहीं किया जा सकेगा। कर्नाटक के परिणामों की समीक्षा में इस तथ्य को भी पूरी तरह से ग़ायब कर दिया गया था कि बोम्मई सरकार के चौदह मंत्री चुनाव हर गए थे। उनमें कई बड़े-बड़े नेता भी थे।

प्रधानमंत्री और उनके सलाहकारों ने न सिर्फ़ कर्नाटक में हार के बाद लिखे गए ‘ऑर्गनाइज़र’ के संपादकीय का संज्ञान नहीं लिया, तेलंगाना में भी हुई कांग्रेस की जीत से भी कोई सबक़ नहीं लिया। उसके उलट, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में हुई भाजपा की जीत को बजाय कांग्रेस की संगठनात्मक कमजोरी, संसाधनों की कमी और उसकी आपसी लड़ाई का परिणाम मानने के मोदी की छवि का करिश्मा और हिंदुत्व की विजय मान लिया गया। वही अब उल्टा पड़ रहा है। पहले चरण में जो कुछ राजस्थान में दिखाई दिया वही आगे के चरणों में पूरे देश में नज़र आएगा।
लोकसभा चुनावों का मतदान प्रारंभ होने से पहले, सभी सर्वेक्षणों में बेरोज़गारी, महंगाई और भ्रष्टाचार को जनता के बीच नाराज़गी के मुख्य मुद्दों के रूप में गिनाया गया था। ‘मंदिर’ और ‘हिंदुत्व’ सबसे कम महत्व के विषयों के तौर पर बताए गये थे।

इस सबका मोदीजी की पूर्व-निर्धारित चुनावी रणनीति पर कोई असर नहीं पड़ा। पहले चरण के मतदान के बाद जब जनता के मूड का पता चला तो हाथ-पैर फूल गए।

बड़ा सवाल यह है कि 2024 के चुनावों को मोदी जी की छवि के साथ-साथ क्या ’मंदिर’ और ‘हिंदुत्व’ की ज़रूरत-कम ज़रूरत के सवाल पर भी जनमत-संग्रह मान लिया जाए? सवाल को इस परिप्रेक्ष्य में भी देखा जा सकता है कि अधिकांश लोगों ने सर्वेक्षणों में कहा था कि भारत सभी धर्मों के लोगों के लिए है। यह किसी एक धर्म के लोगों का देश नहीं है। आम लोगों की भावनाओं के विपरीत मोदीजी ने एक समुदाय विशेष पर खुलकर आक्रमण करना प्रारंभ कर दिया है।

दुनिया में तीसरे नंबर की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी पर प्रधानमंत्री जिस तरह से प्रहार कर रहे हैं क्या उसका विपरीत असर उन मतदाताओं पर भी नहीं पड़ रहा होगा जिनकी गिनती मोदी-समर्थकों में होती है? उदाहरण के लिए चर्चित दक्षिणपंथी लेखिका और पत्रकार मधु पूर्णिमा किश्वर के ताज़ा ट्वीट को लिया जा सकता है : 

एक मुद्दा यह भी है कि दूसरे दलों से भाजपा में भर्ती होकर चुनाव लड़ने वाले सौ अधिक उम्मीदवारों (जिनमें एक बड़ी संख्या पुराने कांग्रेसियों की है) और एनडीए के घटक दलों ने क्या मोदी के इस नए रौद्र रूप की पहले से कोई कल्पना की होगी? उन्हें अगर पता होता कि मोदी चुनावों को इस दिशा में ले जाने वाले हैं तो वे क्या करते? चुनावों के बाद क्या करने वाले हैं?

किए जा रहे दावों के मुताबिक़ अगर भाजपा को उतनी सीटें नहीं प्राप्त होती हैं (जैसा कि प्रचारित किया जा रहा है) तो चुनाव परिणामों का निष्कर्ष क्या निकाला जाएगा? अगर सीटें मिल गईं तो उसके देश के लिए परिणाम क्या होंगे? बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में क्या मान लिया जाएगा कि कट्टर हिंदुत्व को मतदाताओं ने नकार दिया है?

विचार से और

मोदी ने जिस रास्ते को अपनाया है उससे संघ को कोई नाराज़गी इसलिए नहीं होनी चाहिए कि गुजरात के नेता का दिल्ली में अवतरण गोधरा कांड के बाद उभरी उनकी सफल अल्पसंख्यक-विरोधी छवि के चलते ही करवाया गया था, ‘विकास पुरुष’ के नाते नहीं! संघ को तो प्रसन्न होना चाहिए कि मोदी उसी के एजेंडे को इतने आक्रामक तरीक़े से आगे बढ़ा रहे हैं। सच तो यह है कि देश के मुसलमान मोदी के प्रति संघ की कथित नाराज़गी को जुमलेबाज़ी से ज़्यादा कुछ नहीं मानते हैं। उनके लिए संघ की मोदी के प्रति कथित नाराज़गी महज़ दिखावा और विपरीत परिणामों की स्थिति में बचाव का एक कवच मात्र है।

मुसलमान जानते हैं कि मोदी अगर तीसरी बार सत्ता में क़ाबिज़ हो गए तो जश्न ‘इस्लाम’ पर ‘हिंदुत्व’ की फ़तह के रूप में मनाया जाएगा। पराजय हुई तो उसका कारण मोदी का परफॉरमेंस बता दिया जाएगा, हिंदुत्व नहीं। इसीलिए मुसलमानों का सारा ध्यान इस समय मोदी को हराने पर है, प्रधानमंत्री के ‘दुष्प्रचार’ से लोहा लेने पर नहीं। मोदी इस सत्य को जानते भी हैं। मोदी को ज़्यादा चिंता इस बात की हो सकती है कि उनके कहे के बाद भी हिंदुओं को ग़ुस्सा क्यों नहीं आ रहा है? क्या वे भी मुस्लिमों से मिल गए हैं? अगर आ रहा है तो फिर प्रकट क्यों नहीं हो रहा है?

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
श्रवण गर्ग
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें