सत्तारूढ़ दल के दो (पूर्व) प्रवक्ताओं द्वारा की गई विवादास्पद टिप्पणियों से उठे तूफ़ान के बाद फ़िल्म अभिनेता नसीरूद्दीन शाह ने उम्मीद ज़ाहिर की है कि सद्बुद्धि प्राप्त होगी और नफ़रत की आँधी थमेगी। नसीर ने प्रधानमंत्री से भी अपील की कि वे हस्तक्षेप करके नफ़रत के ज़हर को फैलने से रोकें। ऐसी ही कई अपीलें नासिर के अलावा सैंकड़ों बुद्धिजीवियों, सेना के पूर्व वरिष्ठ अधिकारियों, सेवा-निवृत्त आईएएस अफ़सरों आदि ने कोई छह माह पूर्व हरिद्वार में आयोजित हुई उस ‘धर्म संसद’ के बाद भी की थी जिसमें हिंदुओं से अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ शस्त्र धारण करने का आह्वान किया गया था। नसीर ने तब भय व्यक्त किया था कि: ’ये लोग (धर्म संसद के आयोजक) नहीं जानते कि वे क्या कह और कर रहे हैं! ये लोग खुले तौर पर गृह युद्ध को आमंत्रित कर रहे हैं।’ सड़कों पर जो कुछ भी इस समय दिखाई दे रहा है बताता है कि तमाम अपीलों का किसी पर कोई असर नहीं हुआ।
न तो पीएम चुप्पी तोड़ेंगे, न भाजपा बदलने वाली है!
- विचार
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- 12 Jun, 2022

आठ वर्षों की सफल सत्ता-यात्रा के बाद भाजपा और संघ अपने मूल को इसलिए नहीं छोड़ सकते हैं कि अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की नीति का अगर वे घरेलू मोर्चे पर तिरस्कार करते हैं तो अपनी सरकार को विदेशी मोर्चे पर भी उसके पालन की इजाज़त नहीं दे सकते।
सरकारों में बैठे हुए लोग जब अपने ही धर्मनिरपेक्ष नागरिकों की आवाज़ों को सुनना बंद कर देते हैं तो दूसरे मुल्कों की उन कट्टरपंथी ताक़तों को हस्तक्षेप करने का मौक़ा मिल जाता है जिनका धर्मों की समानता और मानवाधिकारों की रक्षा में लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं जैसा यक़ीन नहीं है। उत्तेजनापूर्ण क्षणों के दौरान पार्टी प्रवक्ता द्वारा की गई दुर्भाग्यपूर्ण टिप्पणी का परिणाम यही निकला है कि सरकार को अपने बाक़ी ज़रूरी काम छोड़कर स्पष्टीकरण और आश्वासन देने का काम उन मुल्कों के सामने करना पड़ रहा है जहां न तो लोकतंत्र है और न ही हुकूमतों का किताबी तौर पर भी किसी भी तरह की धर्मनिरपेक्षता में भरोसा है।