मध्यप्रदेश के बैतूल में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष के बड़े नेता राहुल गाँधी को ‘मूर्खों का सरदार’ कहकर भारत के प्रधानमंत्री पद की गरिमा गिराने के अपने ही रिकॉर्ड को एक बार फिर तोड़ दिया है। ज़्यादा अफ़सोस की बात ये है कि यह टिप्पणी उन्होंने पहले प्रधानमंत्री पं.जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिन पर की जो विपक्ष के साथ मर्यादित व्यवहार की मिसाल थे। जिन्होंने आज़ादी के बाद कोई दबाव न होते हुए भी धुर विरोधियों को भी अपनी कैबिनेट में शामिल किया और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे विपक्षी युवा सांसद को भविष्य का प्रधानमंत्री कहने में संकोच नहीं किया। उनके बाद जितने भी प्रधानमंत्री हुए, उन्होंने निजी तौर पर विपक्ष के किसी नेता पर ऐसी अभद्र टिप्पणी नहीं की जैसा कि मोदी जी करते आये हैं। विपक्षी नेताओं के लिए ‘जर्सी गाय’, ‘हाइब्रिड बछड़ा’, ‘कांग्रेस की विधवा’ और ‘पचास करोड़ की गर्लफ्रेंड’ जैसे विशेषण उनके मुखारबिंद से पहले भी टपक कर इतिहास का हिस्सा बन चुके हैं।
राहुल गाँधी की नैतिक आभा से परेशान नज़र आ रहे हैं मोदी!
- विचार
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- 15 Nov, 2023

पीएम मोदी ने कल राहुल गांधी को कांग्रेस का एक 'महाज्ञानी' और मूर्खों का सरदार कहकर संबोधित किया था। क्या प्रधानमंत्री पद पर बैठे व्यक्ति को इस तरह की भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए?
भारत का प्रधानमंत्री कोई व्यक्ति या किसी एक पार्टी का नेता नहीं, संपूर्ण भारत और भारतीयता का प्रतीक होता है। भारत के प्रधानमंत्री का हर क्षण, हर दिन ‘डॉक्यूमेंट’ किया जाता है यानी दस्तावेज़ों का हिस्सा बनता है। ये दस्तावेज़ आने वाली पीढ़ियों को बीते हुए एक युग से परिचय कराते हैं। जब प्रधानमंत्री बोलता है तो भारत का संसदीय गणतंत्र बोलता है। उसका व्यवहार संसदीय मर्यादा की मिसाल बनती है। व्यक्ति के रूप में किसी में जो भी कमी हो, प्रधानमंत्री पद पर बैठने के बाद उसका दायित्व होता है कि वह मर्यादा की इन कसौटियों पर खरा उतरे। प्रधानमंत्री बनने पर किसी नेता के लिए ज़रूरी होता है कि वह इस पद की मर्यादा के अनुरूप अपने व्यक्तित्व में आंगिक, भाषिक और वाचिक रूपांतरण करे। ऐसा करके ही वह भारत के हर नागरिक का गौरव बन सकता है।