प्रधानमंत्री ने देशवासियों को जितना डराना संभव था, डरा दिया। यह भी कह दिया कि इससे बचने का एक ही तरीक़ा है कि घरों में बंद रहा जाए और इसके लिए लक्ष्मण रेखा का अच्छा उदाहरण दिया पर उसके अंदर रहने में सहायता का कोई आश्वासन नहीं दिया। यह तो बताया कि 21 दिन की अवधि लंबी है पर यह नहीं बताया कि इस दौरान जानी-अनजानी दूसरी मुसीबत से निपटने के लिए क्या करना है। उल्टे उन्होंने मीडिया से लेकर पुलिस और स्वास्थ्यकर्मियों का ख्याल रखने की भी ज़िम्मेदारी जनता पर ही डाल दी। यह ज़रूर कहा कि आवश्यक चीजों की कमी नहीं होने दी जाएगी पर जब उत्पादन हो ही नहीं रहा है, डिलीवरी होगी नहीं तो कमी कैसे नहीं होगी, यह नहीं बताया। इन सब कारणों से यह किसी प्रधानसेवक का संदेश कम, एक मजबूर और लाचार संदेशवाहक का संदेश ज़्यादा लगा।
जनता कर्फ्यू और थाली-ताली बजाने के आग्रह को पूरा करने के लिए धन्यवाद देने के साथ उन्होंने यह नहीं बताया कि पिछली बार की ही तरह देश के बाक़ी शहरों में भी (देश भर में) कंपलीट लॉकडाउन की सूचना अचानक दी गई है। उस सूचना के बाद अचानक ट्रेन बंद कर दी गई थी। उनकी सूचना के बाद विमान सेवाएँ बंद हो गईं। इसपर कोई शब्द नहीं, कोई सहानुभूति नहीं। जो लोग दूसरी जगहों पर फँस गए हैं उनके लिए कोई योजना नहीं, कोई सहायता नहीं है। कोरोना के अलावा जो दूसरे मरीज हैं उन्हें कैसे अस्पताल जाना हैं, दवाइयों की व्यवस्था कैसे करनी है। इसपर भी क़रीब पौने 29 मिनट के संदेश में कुछ नहीं था।
15,000 करोड़ रुपए संसाधनों के लिए आवंटित किए जाने की सूचना ज़रूर थी पर उससे तुरंत क्या लाभ मिलेगा, यह भी नहीं बताया गया। मुश्किल में पड़े लोगों की सहायता की जाएगी पर कौन करेंगे और अगर आप कुछ करना चाहें तो कैसे क्या करें इसपर भी संदेश में कुछ नहीं था। संक्षेप में यह नोटबंदी की घोषणा से अलग नहीं था।
दुनिया भर में फैली महामारी की स्थिति में, देश भर में पहली बार लॉकडाउन की घोषणा ऐसे चलताऊ अंदाज़ में नहीं की जा सकती थी। इसमें जो गंभीरता थी वह बोलने में ही थी तथ्यों में ऐसा कुछ नहीं था। मुख्य संदेश में कुछ नहीं और उसके बाद ट्वीट करने से भी समझ में आता है कि उन्हें ग़लती का अहसास है। मैंने तो अपील की है कि, मोदी जी, ज़िद छोड़िए, एक ढंग का संचार सलाहकार, मीडिया एडवाइजर, भाषण लिखने वाला कोई तो रख लीजिए। कई संघी पत्रकार हैं, किसी की तो सलाह ले लिया कीजिए। किसी भी पेशेवर का लिखा या अनुभवी प्रधानमंत्री का संदेश ऐसा नहीं होता। संदेश ऐसा ही था कि लोग घबरा जाएँ।
प्रधानमंत्री की राजनीति, उनकी कार्यशैली, उनकी प्राथमिकताओं और सबसे बड़ी बात, उनके दल से मुझे घोर शिकायत है। इसलिए उनके संबोधन या संदेश में मुझे कमी लगी तो मैंने उसे सामान्य ही माना पर जब यह पता चला कि लोग राशन की दुकानों पर पहुँचने लगे, ट्रैफिक जाम हो गया और फिर ट्वीट आया तो मुझे यक़ीन हो गया कि संदेश आधा-अधूरा था। मैनेजमेंट के एक पुराने जानकार ने ट्वीट किया कि मोदी जी को प्रशासन का क्रैश कोर्स करने की ज़रूरत है। क़ायदे से प्रधानमंत्री को ऐसे कोर्स की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए क्योंकि उनके नीचे बहुत सारे लोग इसमें माहिर होते हैं।
समस्या यह है कि प्रधानमंत्री के कार्यालय में उनके चुने हुए लोग हैं और उनकी भी सहायता या सलाह प्रधानमंत्री लेते हैं, ऐसा नहीं लगता है। नोटबंदी - एक गंभीर निर्णय था और तब ही यह साफ़ हो गया था कि उन्होंने किसी की सलाह नहीं ली थी और रोज़ नियम बदलने पड़े थे।
अफ़सोस यह है कि उन्होंने उससे कोई सीख नहीं ली। इसका कारण उनका वह बयान है, ‘घर में शादी है, पैसे नहीं हैं, हा हा हा …’। यह बहुत दुखद स्थिति थी। देश के आम नागरिकों का इस स्थिति में होना बेहद दुखद और तकलीफदेह था। पर यह और ज़्यादा तकलीफदेह था कि यह स्थिति उनके कारण थी और इससे बचा जा सकता था। लेकिन वह इस पर हँस रहे थे। उनके प्रशंसकों को कोई शिकायत नहीं थी। मेरा मानना है कि वह ऐसे ही हैं और चूँकि प्रशंसकों को कोई शिकायत नहीं है इसलिए वह ज़्यादा सोचते भी नहीं हैं। वरना कोरोना वायरस की समस्या बहुत गंभीर है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 30 जनवरी को ही इसे अंतरराष्ट्रीय चिन्ता वाली विश्व स्वास्थ्य इमरजेंसी घोषित किया था। इसी दिन भारत में कोरोना वायरस का पहला मामला मिला था। क़ायदे से यह सतर्क हो जाने का दिन था पर भारत ने एक महीने से ज़्यादा समय तक कुछ नहीं किया।
मैं नहीं कहता कि यह काम प्रधानमंत्री को ही करना था पर विश्व स्वास्थ्य इमरजेंसी घोषित किए जाने के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय और उसके कुछ अधिकारियों को सतर्क हो जाना चाहिए था और पूरी स्थिति पर नज़र रखते हुए देश के लिए एक योजना बना कर उसे क़ायदे से लागू किया जाना चाहिए था। अगर कोई ग़रीब परिवार रोज़ राशन खरीदने जाए या दवा लाने ही जाए तो? इससे कैसे निपटा जाए। किसी ग़रीब में लक्षण दिखे तो क्या करे – यह सब भी बताया जाना चाहिए था। पर ख़बरें मिल रही हैं कि अस्पतालों में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए भी आवश्यक चीजें नहीं हैं। और भारत में बनने वाली ज़रूरी चीजें अभी हाल तक निर्यात हो रही थीं। भारत सिर्फ़ सैनिटाइजर और मास्क के मामले में गंभीर था पर अस्पतालों में यह भी पूरा नहीं है।
कोरोना ख़तरे के बीच मध्य प्रदेश में सियासत
सबने देखा कि केंद्र सरकार के लिए मध्य प्रदेश में डबल इंजन की सरकार बनाना ज़्यादा ज़रूरी था। लॉकडाउन और भोपाल में बाग़ी विधायकों को ख़तरा होने के बावजूद मध्य प्रदेश के बीजेपी नेताओं और कांग्रेस के बाग़ियों के लिए कुछ सामान्य रहा। शपथ ग्रहण और विश्वास मत जीतते ही शाहीनबाग़ का धरना हटा दिया गया और देश को दोबारा संबोधित करने की ज़रूरत महसूस हो गई।
पूर्व वित्त और गृह मंत्री तथा कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने इसी इतवार को प्रकाशित अपने कॉलम, ‘कोविड 19 से मुक़ाबला और उसके आगे’ में लिखा था, ‘मुझे पक्के तौर पर यक़ीन है कि अगले कुछ दिनों में प्रधानमंत्री कड़े सामाजिक और आर्थिक प्रतिबंधों के साथ वापसी करने को बाध्य होंगे।’ और तथ्य यह है कि इस बार उन्होंने यह नहीं बताया कि जो दफ्तर बंद हैं वे वेतन और दूसरे भुगतान कैसे करेंगे? करेंगे कि नहीं?
वही हुआ। चिदंबरम ने लिखा था, ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन, इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च और कई महामारी विशेषज्ञ पर्याप्त चेतावनियाँ दे चुके थे और दे रहे हैं। सारी चेतावनियों का इशारा एक और सिर्फ़ एक ही नतीजे की ओर रहा कि अगर हमने कठोर, तकलीफदेह और अलोकप्रिय क़दम नहीं उठाए तो संक्रमित लोगों की संख्या नाटकीय रूप से बढ़ जाएगी।’
लॉकडाउन है – घर में रहना होगा। जिनके पास पैसा है उनके लिए फ्रोजन फूड है। वेज, नॉनवेज सब। जिनके पास नहीं है उनके लिए प्याज, अचार, चना और बेसन जैसी चीजें होंगी या मिल जाएँगी। झेलना है तो झेल लेंगे पर सरकार किसलिए होती है?
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