कोरोना वायरस का संक्रमण दुनिया भर में फैल रहा है और इसका असर भी वैश्विक है। भारत की पहले से ख़राब अर्थव्यवस्था में दुनिया की आर्थिक स्थिति के साथ-साथ कोरोना वायरस का भी असर होना है और यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि क्या कुछ हो सकता है।
विश्व पूंजी बाज़ार
कोरोना वायरस से बचाव के लिए स्कूल से लेकर सिनेमा हॉल तक पर प्रतिबंध लग रहा है, आईपीएल को टाल दिया गया है। यह पता नहीं है कि प्रतिबंध कितने दिन चलेगा तो आने वाले समय का अंदाजा लगाया नहीं लगाया जा सकता है।
गुरुवार (12 मार्च) को अमेरिकी स्टॉक सूचकांक गिर गए। डाउ जोन्स औद्योगिक औसत 9.99 प्रतिशत यानी 2,352.60 अंक गिरा, जबकि एसएंडपी 500 सूचकांक 9.51 प्रतिशत यानी 260.74 अंक गिर गया।
नैसडैक कंपोजिट भी 750.25 अंग गिर गया। अनुमान है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था पर कोरोना वायरस का प्रभाव 2.7 ट्रिलियन डॉलर का होगा।
चीन से इटली तक
चीन से शुरू हुई यह महामारी तेजी से फैल रही है और दक्षिण कोरिया से इटली, ईरान तक इसका अच्छा-खासा प्रभाव है। हालांकि, इससे पहली मौतें अमेरिका में होने की ख़बर चिन्ताजनक है। कहने की जरूरत नहीं है कि इसके आर्थिक प्रभाव से अमेरिका में मंदी आ सकती है।चीन में वाहनों की बिक्री 80 प्रतिशत घट गई है। यात्रियों की संख्या सामान्य के मुक़ाबले 85 प्रतिशत कम है। ऐसे में वहाँ की अर्थव्यवस्था थम सी गई है। इसका असर देर-सबेर सारी दुनिया के साथ भारत पर भी पड़ेगा।
भारत पर असर
ब्लूमबर्ग इकनोमिक्स का अनुमान है कि 2020 की पहली तिमाही में जीडीपी साल के मुक़ाबले साल के आधार पर 1.2 प्रतिशत गिर चुकी है। भारत में कुछ साल में चार प्रतिशत कम होने का असर आप देख रहे हैं। ऐसे में वैश्विक स्तर पर अगर यह पहली तिमाही में 1.2 प्रतिशत कम हुआ है जो साधारण नहीं है।
इसके अलावा कल-पुर्जों का निर्माण चीन में सबसे ज्यादा होता है। ऐसे में चीन की फैक्ट्री बंद होने का मतलब है एप्पल का आईफ़ोन हो या निर्माण क्षेत्र की मशीन, उसके पुर्जे नहीं मिलेंगे।
यही नहीं, कोरोना वायरस के कारण चीन के लोग विदेश घूमने भी नहीं जा सकते। वे ना काम कर सकते हैं और ना घूम सकते हैं। दक्षिण एशिया के बीच रिज़ॉर्ट से लेकर पेरिस के बुटीक तक इसका असर होगा।
चीन अगर इस महामारी को जल्दी नियंत्रित कर ले तो दुनिया भर की फैक्ट्री इस साल की दूसरी तिमाही में सामान्य होने की ओर बढ़ सकती हैं और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव सीमित होगा।
कितना समय लगेगा?
अभी यह अनुमान लगा पाना मुश्किल है कि चीन में स्थिति समान्य होने में कितना समय लगेगा। चीन का पिछला रिकार्ड देखते हुए इस बात की अच्छी संभावना है। पर वहाँ स्थिति नियंत्रित होने के बाद ही बाकी विश्व के बारे में कुछ अनुमान लगाना ठीक होगा। जहाँ तक भारत की बात है, अर्थव्यवस्था में मंदी के संकेत काफी समय से हैं। पर हम उससे निपटने की कोई कामयाब कोशिश नहीं कर पाए हैं। ऐसी कोई योजना भी नहीं है और ना सरकार इस दिशा में कुछ करती या करने में सक्षम लगती है।
भारत की बदली प्राथमिकता
भारत को कोरोना के साथ-साथ अपनी स्थितियों से भी निपटना है। इसमें हाल के दिल्ली दंगे, गुजरात के 2002 के दंगे की स्थितियों से तुलना और उसका प्रभाव महत्वपूर्ण है। प्रभाव यह है कि उत्तर पूर्व दिल्ली के दंगा प्रभावित क्षेत्र में अगर कुछ काम चल रहा है तो वह है लोहे के गेट बनाना और धर्म के आधार पर मुहल्लों को सुरक्षित करना। ऐसा नहीं है कि देश भर में यही हो रहा है, पर इससे पता चलता है कि लोगों की प्राथमिकताएं बदल गई हैं।
ऐसा नहीं है कि दिल्ली दंगे के असर से देश का बाकी हिस्सा अप्रभावित होगा। हालत तो यह है कि चिकित्सीय कारणों से भी लोग बच्चों का ख़तना कराने से डर रहें। उन्हें लग रहा है कि बाद इस कारण वे उस धर्म के मान लिए जाएंगे जिसके नहीं हैं। ऐसा कोलकाता से छपे वाले अख़बार ‘द टेलीग्राफ़’ ने लिखा है। एक समाजशास्त्री के अनुसार इससे पता चलता है कि दंगों का असर लोगों में कितना गहरा है।
कोरोना वायरस का डर अपनी जगह है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की कोरोना वायरस से निपटने की तरकीब के तौर पर यूरोप यात्रा पर लगाए गए अस्थायी प्रतिबंध के बाद दुनिया भर के बाज़ारों में बिकवाली का ज़ोर है।
भारत पर असर
शुक्रवार को बाज़ार खुलते ही सेंसेक्स 3,000 अंक तक गिर गया और यह 29,687.52 अंक तक पहुंच गया जबकि निफ़्टी 966 अंक गिरकर तीन साल के सबसे निचले स्तर 8,624.05 पर पहुंच गया। इस वजह से 45 मिनट के लिये कारोबार रोकना पड़ा। फिर से बाज़ार खुलने के बाद यह 3300 अंक तक गिर गया और 29,388 अंक तक पहुंच गया। हालांकि थोड़ी देर बाद शेयर बाजार सुधरा और सेंसेक्स और निफ़्टी ऊपर चढ़े।
कोरोना वायरस का असर सीधे उपभोक्ता केंद्रों यानी चीन और एशिया की अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं पर हुआ है।
विकास के इन दो क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियाँ ठहर सी गई हैं। इस कारण शेयर बाज़ार और निवेशकों का हौसला बढ़ाने की कोशिशों का भी असर नहीं हो रहा है।
निवेशकों को यह कहकर आश्वस्त किया जा रहा है कि कोरोना से प्रभावित देशों में बहुत जल्द आर्थिक गतिविधियाँ तेज़ होंगी। लेकिन, इस बात की संभावना अधिक है कि इन देशों में उत्पादकता के पूर्व स्तर तक दोबारा पहुंचने की प्रक्रिया धीमी हो।
उपभोक्ताओं की क्रय क्षमता विकसित होने और बाज़ार की चमक दोबारा वापस आने के बारे में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता है और यह जल्दी नहीं होने वाला है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोरोना और स्थानीय स्तर पर खराब आर्थिक स्थिति के बीच भारत में शेयर बाजार लगातार गिर रहा है। सेंसेक्स लुढ़क गया है और रुपया भी गिरा है।
अपनी राय बतायें