ऑक्सफ़ैम की एक रिपोर्ट ने मुझे चौंका दिया। रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत के एक प्रतिशत अमीरों के पास देश के 70 प्रतिशत लोगों से ज्यादा पैसा है। ज्यादा यानी क्या? इन एक प्रतिशत लोगों के पास 70 प्रतिशत लोगों के पास जितना पैसा है, उससे चार गुना ज्यादा है। सारी दुनिया के हिसाब से देखें तो हाल और भी बुरा है। दुनिया की 92 प्रतिशत की संपत्ति से दुगुना पैसा दुनिया के सिर्फ़ एक प्रतिशत लोगों के पास है। दूसरे शब्दों में दुनिया में जितनी अमीरी बढ़ रही है, उसके कई गुना अनुपात में ग़रीबी बढ़ रही है।
भारत में हमारी सरकारें कमाल के आंकड़े उछालती रहती हैं। वे अपनी पीठ खुद ही ठोकती रहती हैं। वे दावे करती हैं कि इस साल में उन्होंने इतने करोड़ लोगों को ग़रीबी रेखा के ऊपर उठा दिया है या इतने करोड़ लोगों में साक्षरता फैला दी है। लेकिन दावों की असलियत तब उजागर होती है, जब आप शहरों की गंदी बस्तियों और गांवों में जाकर आम आदमियों की परेशानियों से दो-चार होते हैं।
इस समय देश को आर्थिक प्रगति की जितनी ज़रूरत है, उससे ज्यादा ज़रूरत आर्थिक समानता की है। यदि संपन्नता बंटेगी तो लोग ज्यादा खुश रहेंगे, स्वस्थ रहेंगे। वे ज्यादा उत्पादन करेंगे। उनमें आत्मविश्वास बढ़ेगा। सरकार चाहे तो पूरे देश में नागरिकों की आमदनी में, वेतन में, खर्च में एक और दस का अनुपात बांध दे। फिर देखें कि अगले 5-10 साल में ही चमत्कार होता है या नहीं?
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