कांग्रेसी नेता अधीर रंजन चौधरी का कहना है कि उनके मांगने पर उनको ‘एक देश, एक चुनाव’, संबंधी कमेटी से जुड़े कागजात नहीं दिए गए इसीलिए उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द की अध्यक्षता वाली इस कमेटी का सदस्य बनने से इनकार किया। उनके कहने को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। इससे इस बात का एहसास होता है कि किस गंभीरता से सरकार इस प्रस्ताव को बढ़ा रही है या समय-समय पर बढ़ाती रही है। पर उनके हटाने के फ़ैसले में भी उतना ही झोल है जितना इस प्रस्ताव को बार-बार रखने और खामोश हो जाने में है। जिस अंदाज में एक ट्वीट से इस बात की शुरुआत हुई और एकाध को छोड़कर लगभग सारे न्यूज चैनलों ने ‘समझ’ लिया कि संसद का विशेष सत्र ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ का फ़ैसला करने के लिए बुलाया जा रहा है वह भी कम बड़ा झोल नहीं है।
साझा चुनाव छोटे दलों के लिये नुकसान का सौदा
- विचार
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- 5 Sep, 2023

'एक देश एक चुनाव' यानी लोकसभा के साथ ही विधानसभाओं के चुनाव कराने की जो तैयारी की जा रही है, उसका असर क्या होगा?
जब एक पूर्व राष्ट्रपति की अध्यक्षता में भारी भरकम कमेटी बना दी गई हो, आधे राज्यों में भाजपा या एनडीए की सरकारें हों और सरकार द्वारा संसद में अपने मन के प्रस्ताव पास कराने का रिकॉर्ड हो तो क्या संकेत मिलता है? साफ़ है मामला तकनीकी मजबूरी या मज़बूती से ज़्यादा राजनैतिक है।