क्या चिंता केवल यहीं तक सीमित कर ली जाए कि कुछ टीवी चैनलों ने विज्ञापनों के ज़रिए धन कमाने के उद्देश्य से ही अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए उस बड़े फ़र्जीवाड़े को अंजाम दिया होगा जिसका कि हाल ही में मुंबई पुलिस ने भांडाफोड़ किया है? या फिर जब बात निकल ही गई है तो उसे दूर तक भी ले जाया जाना चाहिए? मामला काफ़ी बड़ा है और उसकी जड़ें भी काफ़ी गहरी हैं। यह केवल चैनलों द्वारा अपनी टीआरपी (टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट) बढ़ाने तक सीमित नहीं है।