अच्छा लगा जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सरकारी अफ़सरों पर सरेआम “पहले आवेदन, फिर निवेदन और फिर दे दनादन” रणनीति के तहत “बैटिंग” करने वाले युवा बीजेपी विधायक के ख़िलाफ़ भारतीय जनता पार्टी संसदीय दल की बैठक में सख़्त क़दम उठाने की बात कही। इससे सत्ता के नशे में चूर तमाम विधायक और सांसदों को एक सख़्त सन्देश गया है, ठीक वैसे ही जैसे साध्वी व भोपाल की सांसद को गया था।
क्या पीएम की सख़्त टिप्पणी के बाद संभलेंगे बीजेपी नेता?
- विचार
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- 7 Jul, 2019

आज जब ऐसा लगता है कि मोदी एक स्वस्थ प्रशासन देना चाह रहे हैं तो ऐसे में ये घटनाएँ उस ऐतिहासिक ख़तरे की ओर इशारा करती हैं जिसमें पार्टी के द्वितीयक और तृतीयक स्तर के नेता सत्ता उन्माद में ऐसा व्यवहार करने लगते हैं जो समाज को डराता और चुभता है और तब आती है लोकप्रिय नेता की भूमिका। अगर उसने सही समय पर सख़्ती नहीं अपनाई तो दल को लालू, मुलायम और मायावती की पार्टी बनने में ज़्यादा समय नहीं लगेगा।