म्यांमार में कल खून की होली खेली गई और भारत हाथ पर हाथ धरे बैठा है। उसकी जुबान को लकवा मार गया है। म्यांमारी फौज ने कल सवा सौ से ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतार दिया और सैकड़ों बर्मी लोग मौत के मुहाने पर पहुंच गए हैं। फौज ने वहां 1 फरवरी को तख्ता-पलट किया था। लगभग इन दो महीनों में उसने 200 से ज्यादा निहत्थे प्रदर्शनकारियों की जान ले ली है।
म्यांमार में लोकतंत्र की हत्या पर चुप क्यों हैं 56 इंच वाले मोदी?
- विचार
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- 29 Mar, 2021
हमारे पड़ोसी देश में खून की नदियां बहें, लोकतंत्र की हत्या हो और हम चुप रहें, इससे बड़ी भारतीय नपुंसकता क्या हो सकती है? तख्ता-पलट वगैरह को तो हम पड़ोसी देशों का अंदरुनी मामला कहकर टाल सकते हैं लेकिन निहत्थे लोगों की सामूहिक हत्या तो विश्व अपराध है। मानव-अधिकारों का कत्ल है।
भारत ने सू ची के तख्ता-पलट और सू ची की गिरफ्तारी पर दबी जुबान से जो प्रतिक्रिया जाहिर की थी, उसे देखकर उस वक्त मुझे यह लग रहा था कि भारत म्यांमारी फौज से पंगा लेने की बजाय ‘मौन कूटनीति’ से काम लेना चाहता है लेकिन अब मुझे लग रहा है कि हमारे लिए यह विकल्प खत्म हो चुका है।