मसल है समझदार को इशारा काफी होता है. लेकिन राजनीति में यह अप्लाई नहीं करता क्योंकि इस क्लास वाले खुद “इशारों” याने इमोशन को बेचने के बिज़नस में (इसे धंधा कहना इसलिए गलत होगा क्योंकि यह शब्द किसी और वर्ग के लिए प्रयुक्त होता है) हो उसके लिए चुनाव परिणाम के जरिये दिए गए इशारों का कोई मतलब नहीं होता. तभी तो पीएम मोदी ने “मोदी है तो ...” के सार्वभौमिक शब्द-समूह को चार जून की हार के बाद “एनडीए” से बदल दिया.