मोहम्मद जुबैर की हर हाल में गिरफ्तारी और अब हर हाल में उन्हें जेल से बाहर नहीं निकलने देने को मानो डबल इंजन की सरकारें आमादा हैं। यूपी सरकार की ओर से मो. जुबैर के खिलाफ एसआईटी का गठन इसी बात की पुष्टि करता है।
क्यों नूपुर पर रहम, जुबैर पर सितम?
- विचार
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- 13 Jul, 2022

ऑल्ट न्यूज़ के सह संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर के खिलाफ कई मुक़दमे दर्ज किए जा चुके हैं। क्या यह दिखाने की कोशिश की जा रही है कि ज़ुबैर बहुत बड़े अपराधी हैं जबकि नुपूर शर्मा को गिरफ्तार नहीं किया जा रहा है।
इससे पहले जब मोहम्मद जुबैर को पहली बार गिरफ्तार किया गया था तब उन्हें जिस मामले में पूछताछ के लिए दिल्ली पुलिस ने बुलाया था उस मामले में वे पहले से ही गिरफ्तारी से अदालती छूट पा चुके थे। लिहाजा 2018 के एक ट्वीट के मामले में उन्हें जेल में डाल दिया गया। मोहम्मद जुबैर ऑल्ट न्यूज़ के सह संस्थापक हैं जो फेक न्यूज़ का फैक्ट चेक करती है।
एडिटर्स गिल्ड, डिजी पब इंडिया फाउंडेशन, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया समेत देश के कई पत्रकार संगठनो ने मो.जुबैर की गिरफ्तारी की निन्दा की है और उनकी तुरंत रिहाई की मांग की है। कमेटी टु प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट (सीपीजे) जैसे अंतरराष्ट्रीय जगत के पत्रकार संगठनों ने भी ऐसी ही आवाज़ बुलन्द की है। इन सबका असर सरकार पर नहीं पड़ना था, नहीं पड़ा। इस आवाज़ की अनदेखी करते हुए जुबैर पर की जा रही सख्ती क्या उचित है? जुबैर के मामले ने भारत के शासन-प्रशासन-न्यायपालिका तक पर सवाल खड़े कर दिए हैं।