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‘तानाशाही’ शब्द बोलना लोकतंत्र में क्यों मना हो?

संसद में वैसे शब्दों की सूची जारी हुई है जो असंसदीय कहलाएंगे। ऐसा विधायिका की ‘गरिमा को बचाने’ के लिए किया जा रहा बताया गया है। पहले से भी यह सूची है और इस सूची में कुछ शब्द और शुमार हो जाएंगे तो यह कोई गैरपारंपरिक एलान नहीं है। फिर भी, यह मुद्दा विमर्श में इसलिए आ गया है क्योंकि ऐसे-ऐसे शब्दों को चुना गया है जिनके ज़रिए वर्तमान सरकार पर विपक्ष लगातार हमला करता रहा है।

सवाल यह है कि सत्ता के ख़िलाफ़ प्रयुक्त होने वाले शब्दों को प्रतिबंधित क्यों किया जा रहा है? खासकर इनमें ऐसे शब्दों को गिनाया जा सकता है जो न अश्लील हैं और न ही अमर्यादित, फिर भी वो असंसदीय घोषित कर दिए गये हैं तो क्यों? 

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इस तरह के कुछेक शब्दों और उसके संभावित प्रयोग पर गौर करें तो पूरी बात स्पष्ट हो जाती है-

• अक्षम- अब कोई सदन में यह नहीं कह सकता कि मोदी सरकार अक्षम है।

• लॉलीपॉप- चुनाव के समय हजारों करोड़ के पैकेज का एलान प्रदेश-प्रदेश घूमकर प्रधानमंत्री करते रहें लेकिन इसे सांसद लॉलीपॉप नहीं बोल सकेंगे।

• पिट्ठू- उन सांसदों को भी पिट्ठू नहीं बोला जा सकेगा जिनके लिए तीन क़ानून बने तो बजाना है तालियां, हटे तो बजाना है तालियां।

• दोहरा चरित्र- सरकार के दोहरे चरित्र पर कोई सवाल नहीं उठेगा भले ही ऑक्सीजन की कमी से मौत होती रहे और सरकार कहे कि कोई मौत नहीं हुई है।

• निकम्मा- सांसद अब नारे नहीं लगा सकते कि सरकार निकम्मी है या कि प्रधानमंत्री निकम्मे हैं।

• नौटंकी- सांसद नहीं बोल सकेंगे कि पैगंबर का अपमान करने वाली नूपुर शर्मा को बीजेपी से निकालना नौटंकी है क्योंकि सरकार उन्हें गिरफ्तारी से बचाने का प्रयास लगातार कर रही है।

• ढिंढोरा पीटना- एक ही घोषणा को पैकेज के फॉर्मेट में लगातार ढिंढोरा पीटती रहेगी सरकार लेकिन सांसद ढिंढोरा पीटना का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे।

• बहरी सरकार- बहरी सरकार को सुनाने के लिए भगत सिंह ने सेंट्रल असेंबली में बम फेंका था, लेकिन स्वतंत्र भारत में लोग शब्द भी नहीं दोहरा सकेंगे- बहरी सरकार।

• विनाश पुरुष- विकास पुरुष के दावे बढ़-चढ़ कर किए जाएंगे लेकिन विनाश पुरुष कोई बोल नहीं सकेगा।

विचार से ख़ास

• तानाशाही- मानना होगा कि लोकतंत्र है। ख़बरदार कि तानाशाही सरकार बोले!

• तानाशाह- लोकतांत्रिक तरीक़े से चुने गये प्रधानमंत्री को तानाशाह नहीं बोल सकते। यही लोकतंत्र है।

• अराजकतावादी- दिल्ली में दंगे होते रहेंगे, पुलिस किंकर्त्तव्यविमूढ़ रहेगी लेकिन कह नहीं सकते कि सरकार अराजकतावादी तत्वों को बढ़ावा दे रही है।

• गद्दार- गद्दार शब्द का उद्घोष नहीं कर सकते लेकिन देशद्रोह के आरोप में मामूली बातों पर भी जेल में बंद किया जाता रहेगा।

• गिरगिट- गिरगिट की तरह रंग बदलने वाला मुहावरा आप संसद में नहीं बोल सकते। क्या गिरगिट का अपमान हो जाएगा?

• असत्य- सांसद नहीं कह सकते कि मंत्रीजी असत्य बोल रहे हैं।

• अहंकार- बोलना मना है कि अहंकार में डूबी है सरकार।

• काला दिन- पुलवामा में हमला हो जाए लेकिन संसद में काला दिन नहीं बोल सकते।

• खरीद फरोख्त- सांसदों-विधायकों की खरीद-फरोख्त होती रहे लेकिन इस शब्द का इस्तेमाल नहीं होगा क्योंकि इससे गरिमा गिरेगी।

• दंगा- दंगा शब्द बगैर बोले देश के अलग-अलग हिस्सों में होने वाले दंगों पर बोलने की चुनौती रहेगी सत्ता और विपक्ष पर।

• दलाल- दलाल को अंग्रेजी में एजेंट बोल लीजिए कबूल है लेकिन दलाल नहीं बोल सकते।

• दादागिरी- लोकतंत्र में दादागिरी का कोई स्थान नहीं है। होती है तो होने दो, लेकिन बोलना मना है।

• बेचारा- विश्वगुरु भारत में कोई बेचारा नहीं है। कोई है तो उसका जिक्र नहीं करने की बेचारगी रहेगी आपकी।

• संवेदनहीन- लोकतांत्रिक सरकार संवेदनशील होती है तो सदन में संवेदनहीन शब्द का इस्तेमाल क्यों हो। सांसद संवेदनहीन बने रहें।

• सेक्सुअल हरेसमेंट- भले ही तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई पर सेक्सुअल हरेसमेंट के आरोप लगे हों लेकिन भविष्य में कभी इसकी चर्चा सदन में नहीं होगी।

सवाल यह है कि संसद की गरिमा शब्दों से गिरती है या उसकी गरिमा बढ़ती है? सांसद अपनी भावनाएं शब्दों के ज़रिए ही तो सदन में रखेंगे। अगर इसे भी प्रतिबंधित किया जाएगा तो वे खुद को व्यक्त कैसे करेंगे?

वास्तव में जिन उदाहरणों में संसद की गरिमा गिरती रही है उससे तो कभी कोई सीख नहीं ली गयी! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस की महिला सांसद रेणुका चौधरी को संसद में शूर्पणेखा कहा था। यह शब्द क्या असंसदीय नहीं था? अगर नहीं था तो क्या होना नहीं चाहिए?

पीएम मोदी ने इशारों में राहुल गांधी को ट्यूबलाइट कहा था। अगर बालबुद्धि असंसदीय होना चाहिए तो ट्यूबलाइट का प्रयोग संसदीय कैसे हो सकता है? इसका संदर्भ भी तो बालबुद्धि या मंदबुद्धि से ही है। एक से अगर बच्चों का अपमान होता है तो दूसरे से दिव्यांगों का।

शब्द प्रतिबंधित करने से सरकार विपक्ष के हमलों से बच जाएगी?

असंसदीय शब्दों के बहाने उन शब्दों को खास तौर से चुना गया है जो वर्तमान मोदी सरकार पर हमले के लिए इस्तेमाल होते हैं। लेकिन क्या इससे संसद में असंसदीय बर्ताव रुक जाएगा? एक शब्द असंसदीय घोषित होगा, उसके बरक्श दूसरे शब्द क्या जोड़ नहीं लिए जाएंगे? नीचे ऐसे प्रतिबंधित शब्दों पर गौर करें जिनके संभावित प्रयोग भी दिए गये हैं-

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हर सरकार की चाहत होती है कि उसके लिए सकारात्मक भाव बना रहे। लेकिन, इसके लिए वातावरण सरकार के कामकाज से बनता है। विपक्ष की भाषा से प्रचलित शब्दावलियों को हटाकर क्या सत्ता पर हमलों को कम या प्रभावहीन बनाया जा सकता है? जो शब्द सरकार के लिए नकारात्मक हैं वह विपक्ष की ओर से आईना दिखाने के काम में आते हैं। इस तरह ये शब्द लोकतंत्र के आभूषण होते हैं। इनमें अश्लील और बुरे प्रभाव वाले शब्दों को हटाया जा सकता है। लेकिन, इसका तरीका मनमाना नहीं हो सकता।

संसद के बाहर मारो-काटो वाली बेखौफ भाषा पर मौन क्यों?

संसद के बाहर मारो-काटो वाली भाषा पर कोई अंकुश नहीं है। ऐसी भाषा बोलने वाले सेलेक्टिव ढंग से बचाए जा रहे हैं। दूसरी तरफ संसद के भीतर विरोध के शब्दों को प्रतिबंधित किया जा रहा है। ऐसे में सरकार की मंशा पर सवाल निश्चित रूप से खड़े होंगे। अगर सरकार संसद के भीतर आचरण और मर्यादा को लेकर इतनी ही चिंतित थी तो उसे कमेटी बनाकर इस मसले पर विचार करना चाहिए था और फिर उसकी सिफारिशें लागू करनी चाहिए थीं।

ख़ास ख़बरें
विपक्ष ने संसद को मर्यादित रखने के लिए शब्दों को प्रतिबंधित करने के तरीकों पर वाजिब सवाल उठाए हैं। मगर, विपक्ष को इस पर अड़ना भी होगा। बोलने की आज़ादी का यह सवाल है। संसद के भीतर प्रतिबंधित शब्द बाहर भी अमर्यादित या असंसदीय के तौर पर चिन्हित किए जाते हैं। संसद आदर्श स्थापित करता है। ऐसे में तानाशाही बताकर लोकतंत्र में सरकार को याद दिलाते रहना कि वह लोकतांत्रिक है, यह विपक्ष का धर्म है। फिर तानाशाही शब्द असंसदीय कैसे हो सकता है। समस्या बड़ी है लेकिन सवाल उससे भी बड़ा है।
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प्रेम कुमार
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