संसद के बजट सत्र में दिए राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बहस का जबाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू का नाम ज़रूर लिया (जिससे वे बचते रहते हैं)। लेकिन नागरिकता संशोधन क़ानून का सन्दर्भ लेते हुए ऐसी बात कह दी जिसकी गूंज काफी समय तक सुनाई देगी।
कितना दम है मोदी के इस आरोप में कि नेहरू की वजह से हुआ बँटवारा?
- विचार
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- अरविंद मोहन
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- 7 Feb, 2020


अरविंद मोहन
जिन्ना की आत्मा अगर कहीं होगी तो बहुत खुश होगी कि आज़ादी के 72 साल बाद ही सही, हिन्दुस्तान की संसद ने भी हिन्दू-मुसलमान भेद को क़ानूनी रूप में मान लिया और हिन्दुस्तान में ग़ैर-मुसलमानों को ख़ास दर्जा दे दिया। भारतीय सरकार और संसद मजहब के आधार पर नागरिकता देने में भेदभाव करने वाला बिल पास करे तो यह उसी दो कौमी नज़रिए की एक राष्ट्रीय स्वीकार्यता है। इसलिए अगर आज प्रधानमंत्री विभाजन के लिए नेहरू को ज़िम्मेवार बताते हैं तो यह घटिया राजनीति है...
उन्होंने कहा कि नेहरू ने प्रधानमंत्री बनने की अपनी आकांक्षा में देश के नक्शे के ऊपर एक लकीर खींच दी और बँटवारे से अल्पसंख्यकों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा। मोदी काफी होम वर्क करके आए थे और उन्होंने नेहरू लियाक़त समझौते का ही नहीं, नेहरू द्वारा असम के मुख्यमंत्री गोपीनाथ बार्दोलोई को लिखी एक चिट्ठी का हवाला भी दिया जिसके अनुसार नेहरू ने उनको हिन्दू-मुसलमान शरणार्थियों में से हिन्दुओं का ज़्यादा ख़याल रखने को कहा था।
अरविंद मोहन
अरविंद मोहन वरिष्ठ पत्रकार हैं और समसामयिक विषयों पर लिखते रहते हैं।