संसद के विशेष सत्र में जो निकला वो न चौंकाने वाला निकला और न देश की राजनीति की काया पलट करने वाला। केंद्र सरकार ने बहु प्रतीक्षित महिला आरक्षण विधेयक का नाम भर नहीं बदला बल्कि उसमें इतने पेच डाल दिए कि देश की महिलायें उन्हें सुलझाते-सुलझाते बूढ़ी हो जाएँगी लेकिन पेच दूर नहीं होंगे। गोदी मीडिया इस विधेयक को केंद्र सरकार का 'ब्रम्हास्त्र' बता रहा है किन्तु ऐसा हकीकत में है नहीं। हकीकत और अफ़साने में बहुत अंतर है।

महिला आरक्षण विधेयक को सरकार ने लोकसभा में पेश कर दिया है, लेकिन क्या इसे जल्द लागू किया जाएगा? क्या हो जब इसे 2027 या 2029 में लागू किया जाए? जानिए आख़िर इतनी देरी क्यों।
जुमलेबाजी में सिद्धहस्त केंद्र सरकार और सरकारी पार्टी की ओर से महिला आरक्षण विधेयक का नाम अब नारी शक्ति वंदन विधेयक कर दिया गया है। जुमलेबाज जानते हैं कि इसे 'नयी बोतल में पुरानी शराब ' की पैकिंग कहा जाता है। यानी कुछ बदला नहीं। सब कुछ ठीक वैसा ही जैसा पहले था। डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार में भी और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में भी कुछ नहीं बदला था। इस विधेयक की कल्पना करने वाली कांग्रेस की सरकार में भी। सब महिलाओं की वंदना तो करना चाहते हैं लेकिन महिलाओं कि प्रति ईमानदार नहीं हैं। ये बेईमानी कल भी थी और आज भी है और शायद कल भी रहेगी।