प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 74 वर्ष पुरानी भारत-विभाजन की विभीषिका तो याद है और और वह हर साल देशवासियों को उस विभीषिका की 'समारोहपूर्वक’ याद दिलाना चाहते हैं, लेकिन चार महीने पहले ऑक्सीजन की कमी से मरते लोग और गंगा में तैरती लाशों की विभीषिका उन्हें याद नहीं है और न ही वे यह चाहते हैं कि कोई उसे याद रखे। भारत की आज़ादी के 75वें वर्ष में प्रवेश करने से ठीक एक दिन पहले प्रधानमंत्री मोदी ने एलान किया है कि अब से हर वर्ष 14 अगस्त को 'विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के तौर पर मनाया जाएगा।

प्रधानमंत्री मोदी ने आख़िर किसलिए यह घोषणा की है कि अब से हर वर्ष 14 अगस्त को 'विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के तौर पर मनाया जाएगा? क्या यह उत्सव पराजय के लिए मनाया जा रहा है। इस पर दो कड़ियों में वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन ने टिप्पणी लिखी है। आज पढ़िए, पहली कड़ी...
दुनिया में कोई भी देश या समाज कभी भी अपनी किसी पराजय का दिवस नहीं मनाता है बल्कि उस पराजय को भविष्य के लिए सबक़ के तौर पर अपनी स्मृतियों में रखता है। लेकिन भारत अब दुनिया का ऐसा पहला और एकमात्र देश हो गया है जो हर साल 14 अगस्त को अपनी पराजय का दिवस मनाएगा। ग़ौरतलब है कि 74 वर्ष पहले 14 अगस्त के दिन ही पाकिस्तान नामक देश अस्तित्व में आया था जो कि भारत के दर्दनाक विभाजन का परिणाम था। सांप्रदायिक नफ़रत और हिंसा के वातावरण में हुआ यह विभाजन महज एक देश के दो हिस्सों में बंटने वाली घटना ही नहीं थी बल्कि क़रीब दशक तक चले स्वाधीनता संग्राम के विकसित हुए उदात्त मूल्यों की, उस संग्राम में शहीद हुए क्रांतिकारी योद्धाओं के शानदार सपनों की और असंख्य स्वाधीनता सेनानियों के संघर्ष, त्याग और बलिदानों की ऐतिहासिक पराजय थी। उसी पराजय का परिणाम था- पाकिस्तान का उदय।