इस साल का जो बजट पेश किया गया है, उसे भाजपा के नेता अगले 25 साल और 100 साल तक के भारत को मजबूत बनानेवाला बजट बता रहे हैं और विपक्षी नेता इसे बिल्कुल बेकार और निराशाजनक घोषित कर रहे हैं।
वैसे जब इस बजट को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण संसद में पेश कर रही थीं तो उनके भाषण को सुननेवाले लोगों को, खासतौर से सामान्य लोगों को लग रहा था कि इस बजट में उनके लिए कुछ नहीं है। सरकार ने न तो रोजमर्रा के इस्तेमाल की कुछ न कुछ चीज़ों को सस्ता करने की घोषणा की है, न आयकर को घटाकर मध्यम वर्ग को कोई राहत दी है और न ही आम लोगों को कुछ मुफ्त सुविधाओं की घोषणा की है।
जैसा कि पिछले बजटों के समय जबर्दस्त नौटंकियां होती थीं, वैसी इस बार बिल्कुल भी दिखाई नहीं पड़ीं। कुल मिलाकर यह बजट निर्गुण निराकार-सा लगता रहा लेकिन जब इसके सारे आंकड़े अलग से विस्तारपूर्वक सामने आए और टीवी चैनलों पर तरह-तरह की बहसें सुनीं तो लगा कि इस बजट में बुनियादी सुधार के कई ऐसे कदम उठाए गए हैं, जिन्हें सरकार के द्वारा जनता को सरल भाषा में अच्छी तरह समझाना होगा।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस बजट में कहीं भी ऐसी झलक नहीं है कि इसका पांच राज्यों के चुनाव से कुछ संबंध है। हर व्यक्ति यह सोच रहा था कि इन पांचों राज्यों के चुनाव में जीत हासिल करने के लिए सरकार इस बजट का इस्तेमाल ज़रूर करेगी।
सच पूछा जाए तो किसानों और मध्यम वर्ग के व्यापारियों और नौकरीपेशा लोग तो इस बजट से निराश ही हुए हैं।
बड़ी-बड़ी कंपनियां ज़रूर खुश हुई होंगी कि उनके टैक्स में कटौती हुई है लेकिन सरकार ने जो सपने इस बजट में दिखाए हैं, यदि वह इन्हें ठोस रूप दे सकी तो लोक कल्याण काफी हद तक बढ़ेगा।
जैसे वह 60 लाख नए रोजगार देगी, 400 नई रेलें चलाएगी, सारे गंगातटीय प्रदेशों में जैविक खेती को बढ़ावा देगी, 80 लाख मकान गरीबों को देगी, 200 नए टीवी चैनलों द्वारा मातृभाषा के जरिए शिक्षा का प्रसार करेगी, लगभग 4 करोड़ घरों में नलों द्वारा शुद्ध जल पहुंचाएगी, पांच नदियों को जोड़ेगी, 25000 किमी की नई सड़कें बनाएगी, लघु-उद्योगों के प्रोत्साहन में सवा दो लाख करोड़ रुपये लगाएगी।
इस तरह की घोषणाएँ सुनने में तो अच्छी लगती हैं लेकिन इन पर भरोसा तभी होगा जब लोगों को इनके ठोस फायदे मिलने लगेंगे। कोरोना महामारी ने करोड़ों लोगों को बेरोजगार किया है और करोड़ों की आमदनी आधी रह गई है, महंगाई ने लोगों की कमर तोड़ दी है, बहुत-से लोग इलाज के अभाव में मारे गए हैं।
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