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मालदीव में क्यों चल रहा ‘भारत भगाओ अभियान’?

पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन का भारत-विरोधी अभियान इतनी रफ्तार पकड़ता जा रहा है कि सत्तारुढ़ ‘माडेपा’ अब संसद से ऐसा कानून पास करवाना चाह रही है, जिसके तहत उन लोगों को छह माह की जेल और 20 हजार रु. जुर्माना भरना पड़ेगा, जो मालदीव पर यह आरोप लगाएंगे कि वह किसी विदेशी राष्ट्र के नियंत्रण में चला गया है। 
डॉ. वेद प्रताप वैदिक

हम भारतीयों को यह जानकर बहुत आश्चर्य होगा कि हमारे पड़ोसी देश मालदीव में आजकल एक जबर्दस्त अभियान चल रहा है,  जिसका नाम है- ‘भारत भगाओ अभियान’! भारत-विरोधी अभियान कभी-कभी नेपाल और श्रीलंका में भी चलते रहे हैं लेकिन इस तरह के जहरीले अभियान की बात किसी पड़ोसी देश में पहली बार सुनने में आई है। 

इसका कारण क्या है, यह जानने के लिए हमें मालदीव की अंदरुनी राजनीति को ज़रा खंगालना होगा। 

यह अभियान चला रहे हैं, पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन, जो लगभग डेढ़ माह पहले ही जेल से छूटे हैं। उन्हें रिश्वतखोरी और सरकारी लूट-पाट के अपराध में सजा हुई थी। उन्होंने सत्तारुढ़ मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी के खिलाफ जन-अभियान छेड़ दिया है।

यह अभियान इसलिए भारत-विरोधी बन गया है कि सत्तारुढ़ ‘माडेपा’ के दो नेताओं राष्ट्रपति मोहम्मद सालेह और पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद को कट्टर भारत-समर्थक माना जाता है। यामीन को अपना गुस्सा नशीद और सालेह पर उतारना है तो उन्हें भारत को ही मालदीव का दुश्मन घोषित करना जरुरी है। 

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यामीन का यह भारत-विरोधी अभियान इतनी रफ्तार पकड़ता जा रहा है कि सत्तारुढ़ ‘माडेपा’ अब संसद से ऐसा कानून पास करवाना चाह रही है, जिसके तहत उन लोगों को छह माह की जेल और 20 हजार रु. जुर्माना भरना पड़ेगा, जो मालदीव पर यह आरोप लगाएंगे कि वह किसी विदेशी राष्ट्र के नियंत्रण में चला गया है। इसे वह राष्ट्रीय अपमान कहकर संबोधित कर रहे हैं। 

यह कानून आसानी से पास हो सकता है, क्योंकि संसद में सत्तारुढ़ दल के पास प्रचंड बहुमत है। यामीन की प्रोग्रेसिव पार्टी में कोई दम नहीं है कि वह सत्तारुढ़ पार्टी को संसद में नीचा दिखा सके लेकिन मालदीव की जनता में उसकी लोकप्रियता बढ़ती चली जा रही है। उसके कई कारण हैं। 

अंदरुनी खींचतान चरम पर

पहला कारण तो यही है कि सत्तारुढ़ ‘माडेपा’ में अंदरुनी खींचतान चरम पर है। राष्ट्रपति सालेह और संसद-अध्यक्ष नशीद में चिक-चिक की खबरें रोज़ मालदीवी जनता को हैरत में डाल रही हैं। नशीद वास्तव में खुद जनाधारवाले नेता हैं। वे संविधान में परिवर्तन करके अपने लिए प्रधानमंत्री का पद पैदा करना चाहते हैं। 

सालेह और नशीद के मतभेद अन्य कई मुद्दों पर भी खुले-आम सबके सामने आ रहे हैं। इसका कुप्रभाव प्रशासन पर हो रहा है। सरकार पर से जनता का विश्वास घटता जा रहा है। दूसरा, महंगाई और कोरोना बीमारी ने मालदीव की अर्थ-व्यवस्था को लगभग चौपट कर दिया है। तीसरा, यद्यपि भारत पूरी मदद कर रहा है लेकिन यामीन-राज में चीन ने जिस तरह से अपनी तिजोरियां खोलकर मालदीवी नेताओं की जेबें भर दी थीं और उन्हें अपनी जेब में डाल लिया था, वैसा नहीं होने के कारण वर्तमान नेतृत्व काफी सांसत में है। 

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चौथा, सालेह-नशीद सरकार पर उसके विरोधी यह आरोप भी जड़ रहे हैं कि उसने भारत से सामरिक सहयोग करने के बहाने मालदीव की संप्रभुता को भारत के हाथ गिरवी रख दिया है। मालदीव में सक्रिय भारतीय नागरिकों को आजकल कई नई मुसीबतों का सामना करना पड़ा है। 

भारतीय राजदूतावास पर हमले की आशंकाएं भी बढ़ गई हैं। यह असंभव नहीं कि मालदीव में तख्ता-पलट की कोई फौजी कार्रवाई भी हो जाए। भारत के लिए यह गहन चिंता का विषय है।

(डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग www.drvaidik.in से साभार)

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डॉ. वेद प्रताप वैदिक
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