एक साल पहले जब कोरोना की वैश्विक महामारी ने भारत को अपनी चपेट में लेना शुरू किया था तब पूरे देश में नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के ख़िलाफ़ आंदोलन चल रहा था। केंद्र और बीजेपी शासित राज्यों की सरकारों ने कोरोना महामारी की आड़ में उस आंदोलन को दबा दिया था। देश में इस समय एक बार फिर कॉरपोरेट नियंत्रित और पोषित मीडिया के ज़रिए कोरोना संक्रमण के बढ़ने का माहौल बनाया जा रहा है।
कोरोना की वैश्विक महामारी ने एक साल पहले जब भारत को अपनी चपेट में लेना शुरू किया था तब केंद्र और बीजेपी शासित राज्यों की सरकारों ने सीएए और एनआरसी वाले आंदोलन को दबा दिया था। अब किसान आंदोलन है।
चूँकि केंद्र सरकार चौतरफ़ा चुनौतियों से घिरी हुई है। देश की अर्थव्यवस्था की हालत चिंताजनक बनी हुई है। महंगाई और बेरोज़गारी की समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया है। जन-प्रतिरोध के स्वर अब तेज़ होने लगे हैं। तीन महीने से जारी किसान आंदोलन लगातार व्यापक होता जा रहा है। सरकार की ओर से आंदोलन को कमज़ोर करने और दबाने के तमाम प्रयास नाकाम हो चुके हैं। इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि सरकार कोरोना की इस 'नई लहर’ का इस्तेमाल किसान आंदोलन और प्रतिरोध की अन्य आवाज़ों को दबाने के लिए करे।