कुछ दिनों पहले बिना कारण बताये ही एक सरकारी आदेश के अनुसार देश के तीन प्रतिष्ठित समाचार पत्र समूह द हिन्दू, टाइम्स ऑफ़ इंडिया और द टेलीग्राफ़ से सभी सरकारी विज्ञापन हटा लिए गए। इसके बाद भी सरकार और बीजेपी के प्रवक्ता यह सफाई देते जा रहे हैं कि देश में मीडिया पूरी तरह से स्वतंत्र है। प्रधानमंत्री जी तो हमेशा इमरजेंसी को याद कर ही भावुक हो जाते हैं और इसे काला अध्याय बताते हैं।
इमरजेंसी तो एक घोषित काला अध्याय थी, पर आज के दौर में तो उससे कहीं ज़्यादा ख़राब हालत देश में हैं। यह सबको पता है कि आज के दौर में सरकार की नीतियों और कार्यकलापों के विरुद्ध ख़बरें प्रकाशित करने में यही तीन समाचार पत्र समूह अग्रणी थे, और सरकार ने इनकी धार कम करने के लिए यह क़दम उठाया है।यह सरकार मीडिया की आज़ादी किसी भी क़ीमत पर बर्दाश्त नहीं कर सकती। इसका कारण भी स्पष्ट है, पारदर्शिता की बातें करने वाली इस सरकार में कोई भी विषय किसी भी स्तर पर स्पष्ट नहीं है। आप रफ़ाल सौदे को लेकर ‘द हिन्दू’ में प्रकाशित ख़बरों को याद कीजिये, जब रिपोर्ट प्रकाशित हो गयी तब सरकार को यह पता चला कि अतिगोपनीय फ़ाइल से कुछ कागज़ गायब हो गए हैं।
इस सरकार ने लगभग प्रत्येक मीडिया समूह को अपने तरीक़े से चलाने का प्रण ले लिया है। धीरे-धीरे सभी निष्पक्ष मीडिया समूह आज के दिन केवल सरकार का गुणगान कर रहे हैं।
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के एशिया पैसिफ़िक ब्यूरो के प्रमुख डेनियल बास्टर्ड के अनुसार, समाचार पत्रों में सरकारी विज्ञापन को रोक देना सरकार की मंशा जाहिर कर देता है, यह बताता है कि सरकार क्या चाहती है।
वैसे भी इस देश में सरकारी विज्ञापन जितनी संख्या में प्रकाशित होते हैं, वैसा तो दूसरे देश वाले सोच भी नहीं सकते। पूरे-पूरे पृष्ठ के रंगीन विज्ञापन सामान्य हो चले हैं, और हरेक में सबसे पहले प्रधानमंत्री स्वयं प्रकट होते हैं। दूसरी तरफ़ समाचार पत्रों की समाचार के प्रति जिम्मेदारी देखिये, आजकल समाचार पत्रों में समाचार तीसरे पृष्ठ से आरम्भ होते हैं क्योंकि पहले दो पृष्ठ में विज्ञापन होते हैं।
पूरी दुनिया देश की वर्तमान सरकार और मीडिया के रिश्ते को अच्छी तरह से समझती है। प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में हम लगातार नीचे जा रहे हैं। वर्ष 2019 के इंडेक्स में भारत 140वें स्थान पर था जबकि 2018 में 138वें स्थान पर।
2002 में जब प्रेस फ्रीडम इंडेक्स को आरम्भ किया गया था तब हम 80वें स्थान पर थे। भारत से ऊपर तो ज़िम्बाब्वे, अफ़ग़ानिस्तान, म्यांमार और साउथ सूडान जैसे देश भी हैं। वर्ष 2017 के इंडेक्स में कुल 180 देशों की सूची में भारत 136वें स्थान पर था जो 2016 की तुलना में तीन स्थान नीचे था। द इकोनॉमिस्ट ग्रुप के संस्थान इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट द्वारा “डेमोक्रेसी इंडेक्स 2017 फ्री स्पीच अंडर अटैक” प्रकाशित की गई थी। वर्ष 2006 से हरेक वर्ष डेमोक्रेसी इंडेक्स प्रकाशित किया जाता रहा है, पर 2017 में एक अलग खंड में मीडिया फ्रीडम इंडेक्स भी प्रस्तुत किया गया था। प्रकाशकों के अनुसार इस इंडेक्स की ज़रूरत इसलिए है क्योंकि आज के दौर में मीडिया की स्वतंत्रता सबसे निचले स्तर पर है और दुनिया के सभी क्षेत्रों में स्वतंत्रता पर ग्रहण लग रहा है।
इस इंडेक्स में भारत का स्थान 49वाँ था, पर इसी स्थान पर 21 और देश भी हैं क्योंकि भारत समेत हरेक देश के 7 अंक हैं। दरअसल, यह इंडेक्स 0 से 10 अंक के बीच है, जहाँ 9-10 अंक वाले देशों में मीडिया सर्वाधिक स्वतंत्र है। 7-8 अंक वाले देशों में मीडिया आंशिक स्वतंत्र है और इससे नीचे के अंक वाले देशों में मीडिया स्वतंत्र नहीं है। यहाँ पर मीडिया का मतलब टीवी, प्रिंट और सोशल मीडिया तीनों ही हैं।
पत्रकारों के लिए बढ़े ख़तरे
भारत का मीडिया आंशिक स्वतंत्र है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में जाति, धर्म, वर्ण और सरकार की आलोचना करने पर भी क़ैद हो जाती है, पत्रकारों पर ख़तरे बढ़े हैं और झारखंड, छत्तीसगढ़ और जम्मू और कश्मीर तो पत्रकारों के लिए बहुत ख़तरनाक हो गए हैं। सरकारें, मिलिट्री और तथाकथित दक्षिणवादी हिन्दू संगठन पत्रकारों के लिए ख़तरा उत्पन्न करते हैं।
मीडिया की आंशिक स्वतंत्रता का मतलब भी इंडेक्स में बताया गया है, मीडिया बहुआयामी तो है पर इसके बड़े हिस्से पर सरकार या कुछ औद्योगिक घरानों का कब्ज़ा है। सरकार या सरकार समर्थित दक्षिणपंथी संगठनों के विरुद्ध उठने वाली आवाज़ को दबा दिया जाता है, या क़ानून का सहारा लेकर कुचल दिया जाता है। इन्टरनेट या दूसरे सोशल मीडिया भी लगभग सरकारी नियंत्रण में हैं, इन्हें कई मौक़ों पर बंद भी कर दिया जाता है।
वैसे भी मीडिया का आलम यह है कि झूठी ख़बरें गढ़ी जाती हैं, समाज पर असर डालने वाली ख़बरें लापता रहतीं हैं, विभिन्न संगठनों के लोग जिन्हें सरकार का संरक्षण प्राप्त है, दिन भर मीडिया के सहारे लोगों के जान से मारने की धमकी देते हैं और देशभक्त बन जाते हैं। इनके या सरकार की नीतियों की आलोचना करनेवाले देशद्रोही करार दिए जाते हैं।
प्रेस की स्वतंत्रता सीमित है, कुछ जगहों पर समाचार पत्रों का प्रकाशन बंद कर दिया जाता है। सरकार अपनी मर्जी से सोशल मीडिया और इन्टरनेट का उपयोग नियंत्रित कर देती है। वर्ष 2017 के दौरान कई जर्नलिस्ट की भी हत्या की गयी, अनेक दक्षिणवादी हिन्दू संगठन कभी गाय के नाम पर तो कभी मजहब या देशभक्ति के नाम पर लोगों की सरेआम हत्या कर देते हैं।इंडेक्स बताता है कि विश्व के कुल 30 देश, जहाँ 11 प्रतिशत आबादी बसती है, वहाँ मीडिया पूरी तरह स्वतंत्र है। इसी तरह विश्व की 34.2 प्रतिशत आबादी भारत समेत 40 देशों में रहती है और इन देशों में मीडिया आंशिक स्वतंत्र है। इंडेक्स में कुल 97 देश ऐसे हैं जहाँ का मीडिया स्वतंत्र नहीं है।रिपोर्ट में बताया गया है कि इन्टरनेट और सोशल मीडिया का यह दौर सही मायने में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सुनहरा दौर है, पर हालत यह हैं कि विश्व की आधी से भी कम आबादी स्वतंत्र मीडिया का लाभ उठा पा रही है और दूसरी तरफ़ केवल तानाशाही में ही नहीं बल्कि लोकतन्त्रों में भी मीडिया पर या चुनिन्दा ख़बरों पर प्रतिबंध आम बात है।
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