यह एक अलग तरह का युद्ध है जिसकी तैयारी शायद अलग-अलग प्रयोगशालाओं में सालों से की जाती होगी! ऐसा युद्ध जिसमें हथियारों का इस्तेमाल कम से कम दिखता है पर लड़ाई निरंतर चलती रहती है। उस समय भी जारी रहती है जब लगने लगता है कि अब सबकुछ सामान्य हो गया या हो रहा है। इस तरह के युद्ध में प्रतिद्वंद्वी का शरीर नहीं बल्कि उसका अपने होने या बने रहने की ज़रूरत में यक़ीन ख़त्म कर दिया जाता है। युद्ध की खूबी यह होती है कि इसे ‘प्रेम और सौहार्द’ की थीम पर लड़ा जाता है पर अंतिम नतीजे के रूप में नफ़रत को हासिल किया जाता है।
बर्लिन से ज़्यादा ऊँची नफ़रत की दीवारों पर ख़ामोश हैं मोदीजी?
- विचार
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- 14 Mar, 2025

होली के बीच रमज़ान के दौरान मस्जिदों को तिरपालों से ढँकने और जुमे की नमाज़ का समय बदलने का मामला सुर्खियों में है। आख़िर इसको लेकर पीएम मोदी चुप क्यों हैं? जानिए पूरी रिपोर्ट।
नवम्बर 1989 में बर्लिन की दीवार के ध्वस्त होने के साथ मान लिया गया था कि भौगोलिक विभाजन और ज़मीनी साम्राज्यवाद के ज़माने अब ख़त्म होते जाएँगे। मोदी जी ने इस संदर्भ में एक टिप्पणी सिख धर्मावलम्बियों के पाकिस्तान में करतारपुर स्थित गुरुद्वारा दरबार साहिब में जाने के लिए पंजाब सीमा पर कॉरिडोर के निर्माण के सिलसिले में की थी। नवम्बर 2018 में गुरु पर्व के अवसर पर उन्होंने कहा था :’ किसने सोचा था कि बर्लिन की दीवार गिर सकती है! शायद गुरु नानक देवजी के आशीर्वाद से करतारपुर कॉरिडोर (भारत-पाक के !) जन-जन को जोड़ने का बड़ा कारण बन सकता है!‘