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बर्लिन से ज़्यादा ऊँची नफ़रत की दीवारों पर ख़ामोश हैं मोदीजी?

यह एक अलग तरह का युद्ध है जिसकी तैयारी शायद अलग-अलग प्रयोगशालाओं में सालों से की जाती होगी! ऐसा युद्ध जिसमें हथियारों का इस्तेमाल कम से कम दिखता है पर लड़ाई निरंतर चलती रहती है। उस समय भी जारी रहती है जब लगने लगता है कि अब सबकुछ सामान्य हो गया या हो रहा है। इस तरह के युद्ध में प्रतिद्वंद्वी का शरीर नहीं बल्कि उसका अपने होने या बने रहने की ज़रूरत में यक़ीन ख़त्म कर दिया जाता है। युद्ध की खूबी यह होती है कि इसे ‘प्रेम और सौहार्द’ की थीम पर लड़ा जाता है पर अंतिम नतीजे के रूप में नफ़रत को हासिल किया जाता है। 

नवम्बर 1989 में बर्लिन की दीवार के ध्वस्त होने के साथ मान लिया गया था कि भौगोलिक विभाजन और ज़मीनी साम्राज्यवाद के ज़माने अब ख़त्म होते जाएँगे। मोदी जी ने इस संदर्भ में एक टिप्पणी सिख धर्मावलम्बियों के पाकिस्तान में करतारपुर स्थित गुरुद्वारा दरबार साहिब में जाने के लिए पंजाब सीमा पर कॉरिडोर के निर्माण के सिलसिले में की थी। नवम्बर 2018 में गुरु पर्व के अवसर पर उन्होंने कहा था :’ किसने सोचा था कि बर्लिन की दीवार गिर सकती है! शायद गुरु नानक देवजी के आशीर्वाद से करतारपुर कॉरिडोर (भारत-पाक के !) जन-जन को जोड़ने का बड़ा कारण बन सकता है!‘

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यूक्रेन युद्ध और हाल की अन्य घटनाएँ बताती हैं कि न सिर्फ़ भौगोलिक विभाजन फिर से ज़िंदा हो गया है नए युद्ध शुरू हो गए हैं। ये युद्ध समाजों को धर्म के आधार पर विभाजित करने के हैं। मोदी जी पोलैंड की राजधानी वारसा से दस घंटों की ट्रेन यात्रा करके सिर्फ़ सात घंटों के लिए यूक्रेन की राजधानी कीव इसलिए जाते हैं कि महाशक्ति रूस के साथ उस छोटे से देश की लड़ाई ख़त्म करवा सकें पर अपने ही देश के भीतर एक बड़े धर्म और छोटे संप्रदाय के बीच उनकी ही पार्टी के तत्वों द्वारा चलाए जा रहे युद्ध के प्रति प्रधानमंत्री बहुत ही सहजता से आँखें मूँद लेते हैं। 

आपसी गिले-शिकवे दूर करने के त्योहार होली के अवसर पर ‘सांप्रदायिक प्रेम और सौहार्द’ क़ायम रखने के नाम पर उत्तर प्रदेश में जो कुछ हुआ वह दहशत पैदा करने वाला है। आबादी के मान से यूपी को एक राष्ट्र मान लिया जाए तो उसे दुनिया के कुल 234 मुल्कों में इंडोनेशिया और पाकिस्तान के बीच पाँचवें क्रम पर रखना पड़ेगा। ये दोनों ही इस्लामी हुकूमतें हैं। होली को लेकर अल्पसंख्यक समुदाय में जिस तरह की दहशत पैदा हुई वह राष्ट्रीय स्तर पर दिल दहलाने वाली है।

आज़ादी के बाद (या शायद पहले भी) कभी ऐसा नहीं हुआ होगा कि मस्जिदों को तिरपालों से ढँका गया हो या नमाज़ों का वक्त बदला गया हो। मुस्लिमों से कहा गया कि वे घरों के भीतर रहते हुए चल रहे रमज़ान के महीने के दौरान अपनी शुक्रवार की नमाज़ पढ़ें। 
मुल्क की ज़िंदगी में इस तरह के हालत किसी विदेशी ताक़त से सामरिक युद्ध या असाधारण कर्फ्यू के दौरान ही पैदा होते रहे हैं।
जो हो रहा है वह इसलिए ख़तरनाक है कि एक भौगोलिक पाकिस्तान के निर्माण के लिए तो गांधी को गुनहगार ठहराकर उन्हें सज़ा भी दे दी गई पर मुल्क की एक बड़ी आबादी के दिलों और गाँव-शहरों की बस्तियों में जिन हज़ारों-लाखों छोटे-छोटे पाकिस्तानों का निर्माण जाने-अनजाने हो रहा है उसके लिए आगे आने वाला भविष्य किस ‘गांधी’ को दोषी ठहराएगा?
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यूपी की घटनाओं के बाद सोशल मीडिया पर चिंताएँ व्यक्त की जा रही हैं कि मुल्क को आख़िर किस दिशा में ले जाया जा रहा है? क्या कुछ ऐसा हो रहा है कि एक राज्य अलग दिशा में जा रहा है और दूसरा अलग दिशा में और राष्ट्र किसी तीसरी दिशा में जाने की तैयारी में जुटा है? राष्ट्र के भविष्य को लेकर नरेंद्र मोदी का स्वप्न क्या यूपी पर योगी के स्वप्न से भिन्न हो सकता है जबकि दोनों नेता एक ही पार्टी के घोषणापत्र और संवैधानिक निष्ठाओं से बंधे हुए हैं?

अब मामला यूपी का नहीं बचा! भय यह है कि होली के अवसर पर यूपी में जो कुछ हुआ वह ‘एक्सीडेंटल’ था या उसे किसी ‘प्रयोग’ के तौर आज़माया गया था? अगर ‘प्रयोग’ था तो उसकी सफलता-असफलता का प्रभाव आने वाले त्योहारों और अन्य राज्यों के अमन-चैन पर कितना पड़ने वाला है? कोई कुछ नहीं बोल रहा है! आश्वासन का एक शब्द भी सत्ता प्रतिष्ठान की ज़ुबान से नहीं सुनाई पड़ रहा है! देश के भीतर बर्लिन से ऊँची नफ़रत की दीवारें खड़ी की जा रही हैं और प्रधानमंत्री हमेशा की तरह चुप हैं।

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श्रवण गर्ग
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