दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने 2015 की प्रचंड जीत को फिर से दोहराकर सभी को हैरान कर दिया है। शायद ही कहीं ऐसा उदाहरण मिले जहाँ किसी पार्टी को जनता ने इतना समर्थन, सम्मान और प्यार दिया हो। यह आप की एकतरफ़ा जीत है।
कैसे हारते-हारते बचे कड़े मुक़ाबले में फंसे मनीष सिसोदिया?
- विचार
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- 13 Feb, 2020

दिल्ली भर में झाड़ू चला और यमुनापार में नहीं चला, इसके देखकर शायद आम आदमी पार्टी भी हैरान है। वह इसलिए कि अगर यहाँ भी झाड़ू चल जाता तो फिर उनका ‘इस बार 67 के पार’ वाला नारा भी सच साबित हो जाता। आप को हैरानी तो वोटों की गिनती के दौरान मनीष सिसोदया के पटपड़गंज की सीट पर पीछे चलने पर भी हुई थी। तब पूरी आम आदमी पार्टी के हाथ-पैर फूल गए थे।
आम आदमी पार्टी की इस जीत का सेहरा अगर किसी के सिर बाँधा जा सकता है तो पहले नंबर पर अरविंद केजरीवाल का नाम आता है तो दूसरे नंबर पर मनीष सिसोदिया का। यही वजह है कि सोशल मीडिया पर दोनों की पुरानी तसवीरों के साथ-साथ नई तसवीरों को यह कहते हुए वायरल किया गया कि यह जोड़ी सलामत रहे, मगर वोटों की गिनती के दौरान एक वक़्त ऐसा भी आया था जब ऐसा लगने लगा था कि कहीं मनीष सिसोदया ख़ुद पटपड़गंज की सीट तो नहीं हार जाएँगे। पूरी आम आदमी पार्टी के हाथ-पैर फूल गए थे। हालाँकि ऊपरी तौर पर सिसोदिया ख़ुद मतगणना केंद्र में हँसते हुए दिखाई दे रहे थे लेकिन असल में उनके दिमाग़ में भी अनिश्चितता ज़रूर पैदा हो गई थी। वह आख़िरी राउंड में तभी वहाँ से हटे, जब यह तय हो गया कि अब उनके प्रतिद्वंद्वी बीजेपी के रवि नेगी नहीं जीत पाएँगे। क्या होता अगर मनीष सिसोदिया ख़ुद चुनाव हार जाते?