रणनीति में लगातार अपनी और विरोधी की शक्तियों का तुलनात्मक अध्ययन करना होता है। यह सिद्धांत मानव संगठनों की रणनीति में ज़्यादा उपादेय होता है क्योंकि मानव सोच में स्थिति-सापेक्ष बदलाव की रफ़्तार ज़्यादा होती है। पश्चिम बंगाल की चुनावी रणनीति में दो बड़े किरदार हैं- मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और केंद्र सहित कई राज्यों में विजय पताका फहराने वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)। सन 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव और सन 2016 के राज्य के विधानसभा चुनाव के आंकड़े इस बात की चीखती तस्दीक हैं कि बीजेपी तूफ़ानी गति से लोकप्रिय हो रही है। मोदी के सीन पर आने के बाद यानी 2014 के चुनाव से इस लोकप्रियता के दो चरण हैं- पहला जिसमें वाम दलों और कांग्रेस के मतदाताओं ने अपनी निष्ठा बदली, हालाँकि एक छोटे प्रतिशत ने टीएमसी का दमन थामना जारी रखा, और दूसरा, अगले चरण में विकल्प उपलब्ध होने के कारण ममता के वोटरों का भी सांप्रदायिक आधार पर बीजेपी के प्रति रुझान, जो पहले नहीं था। यह विकल्प दशकों से चल रही तुष्टिकरण के ख़िलाफ़ उनके आक्रोश को हवा देता है और प्रश्रय भी।