सीधी बात समझने की हमारी आदत नहीं है। क़िस्से के ज़रिये ग़लत बात भी दिल के भीतर उतर जाती है और सदियों पड़ी रहती है। वैदिक समय की श्रुति परम्परा से ब्रिटिश काल की ग़ुलाम मानसिकता तक और उसके बाद आज़ाद भारत में हमने कभी भी तार्किक-वैज्ञानिक सोच से सत्य को नहीं देखा। वैदिक काल में देवी-देवताओं के तथाकथित उड़नखटोले (वायुयान) से लेकर शल्य चिकित्सा के ज़रिये मानव पर हाथी का सर आरोपित करना हमारे धार्मिक विश्वास का आधार बना।
आख़िर देश की नौकरशाही को हुआ क्या है?
- विचार
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- 11 Apr, 2021

ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने सही कहा था अपने लिहाज़ से। ब्यूरोक्रेसी उनके शासन के लिए हर स्याह-सफ़ेद करने को तैयार रहती थी। वह भारतीय पर गोली चलाना हो या कृषि को खोखला करने की राजकीय साज़िश हो, या फिर हिन्दू-मुसलमान को लड़ाना हो या आवाज़ उठाने वालों को देशद्रोह के मुक़दमों में फँसाना हो।
आधुनिक भारत के शिल्पी नेहरु के कपड़े पेरिस से धुल कर आना या उनका कॉलेज में कई गुना जुर्माना दे कर एक ‘किस’ की जगह कई ‘किस’ लेना, लॉर्ड मैकाले का सन 1835 में ब्रिटिश संसद में भारतीयों को अंग्रेज़ी सिखाकर मानसिक ग़ुलामी वाले ‘भूरे-क्लर्कों’ की फ़ौज तैयार करना ताकि अंग्रेज़ी हुकूमत अनवरत चलती रहे और लौह-पुरुष सरदार पटेल का केन्द्रीय सेवा यानी अफसरशाही को ‘स्टील-फ्रेम’ बताना, कुछ ऐसे क़िस्से हैं जो कभी सच थे नहीं, लेकिन जो सदियों से प्रबुद्ध लोक-विमर्श को ग़लत खाद-पानी देते रहे हैं।