सीधी बात समझने की हमारी आदत नहीं है। क़िस्से के ज़रिये ग़लत बात भी दिल के भीतर उतर जाती है और सदियों पड़ी रहती है। वैदिक समय की श्रुति परम्परा से ब्रिटिश काल की ग़ुलाम मानसिकता तक और उसके बाद आज़ाद भारत में हमने कभी भी तार्किक-वैज्ञानिक सोच से सत्य को नहीं देखा। वैदिक काल में देवी-देवताओं के तथाकथित उड़नखटोले (वायुयान) से लेकर शल्य चिकित्सा के ज़रिये मानव पर हाथी का सर आरोपित करना हमारे धार्मिक विश्वास का आधार बना।